Monday, December 11, 2023
Homeदेशअन्य प्रदेशगांव का नायाब चूल्हा, ना पर्यावरण को नुकसान, ना सेहत और जेब...

गांव का नायाब चूल्हा, ना पर्यावरण को नुकसान, ना सेहत और जेब पर भारी !

बेंगलुरू : हमारे देश के गांवों में जाइए तो आपको वहां आमतौर पर मिट्टी के चूल्हों पर खाना पकता दिखाई देगा। ये लाखों लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। इसके चलते ना सिर्फ हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है बल्कि इससे हमारे वनों का विनाश और आर्थिक नुकसान भी होता है। सबसे चौकानों वाली बात यो ये हैं कि सेहत पर इसके खराब असर के कारण हर साल करीब 10 लाख लोगों की मौत हो जाती है।

ग्रीनवे की वेबसाइट के अनुसार, चूल्हे पर एक घंटे खाना पकाने का मतलब 20 सिगरेट पीने के बराबर है। चूल्हे वनों के विनाश का कारण बनते हैं क्योंकि इसके लिए ग्रामीण परिवारों को भारी मात्रा में जलाऊ ईंधन की जरूरत पड़ती है। ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन की वजह खाना पकाने की ये प्रक्रिया भी है। आर्थिक नजरिए से देखा जाए तो खाना पकाने के ऐसे साधनों के लिए ईंधन को एकत्र करने या उसे खरीदने में जो प्रयास लगता है या जो धन खर्च होता है उसे ग्रामीण परिवारों की आर्थिक हानि समझा जाना चाहिए।

बेंगलुरू के स्टार्ट अप ग्रीनवे ग्रामीण इंफ्रा ने बस इसी परिपाटी को बदलने की ठान ली। स्टार्ट अप को साल 2011 में मुंबई के उद्यमी और इंजीनियर अंकित माथुर ने अपनी सहयोगी नेहा जुनेजा के साथ मिलकर शुरू किया। ग्रीनवे उन ग्रामीण परिवारों के लिए सुरक्षित, सेहतमंद और ज्यादा कारगर भोजन पकाने के तरीके इजाद करती है जिनकी पहुंच स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों तक नहीं हैं। उनकी कंपनी के उत्पादों में ग्रीनवे स्मार्ट स्टोव और जंबो स्टोव शामिल हैं जो मजबूत होने के साथ हल्के भी हैं और उनमें लकड़ी और फसलों के अवशेष जैसे जैव ईंधन का इस्तेमाल होता है। लेकिन अच्छी बात ये है कि इसमें ईंधन की खपत 65 प्रतिशत तक और धुंआ 70 फसदी तक कम हो जाता है। इसके चलते स्वास्थ्य पर बुरे असर को कम किया जा सकता है, आर्थिक नुकसान कम होता है और पर्यावरण को क्षति से बचाया जा सकता है।

स्मार्ट स्टोव का विचार      

ग्रीनवे स्मार्ट स्टोव के विचार का खयाल माथुर और जुनेजा के दिमाग में पहले पहल तब आया जब वे नवीकृत ऊर्जा और कार्बन के संयोजन जैसे पर्यावरण से जुड़े एक ग्रामीण प्रोजेक्ट पर एक साथ बतौर कंसल्टेंट काम रहे थे। उन्होंने पाया कि गांवों में फौरी तौर पर खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा का बेहद अभाव था और जो संसाधन उपलब्ध थे वे ढेर सारी समस्याओं की जड़ थे। माथुर का कहना है कि, हमने एक इंजीनियर के रूप में इन समस्याओं को काफी गंभीरता से लिया। लेकिन ये समस्या ऐसी थी जिसे एक किफायती उत्पाद के विकल्प की मौजूदगी से ही दूर किया जा सकता था। ग्रीनवे टीम ने साल 2010 में कुकस्टोव की डिजाइन पर काम करना शुरू कर दिया। अगले साल तक उसका प्रोटोटाइप मॉडल तैयार हो गया। हालांकि ग्रीनवे के उत्पाद देखने में साधारण लगते हैं लेकिन उन्हें बहुत ही कुशलता के साथ बनाया गया है जिसके पीछे गहरा शोध और विकास की प्रक्रिया है। शुरुआत में इस उत्पाद को तैयार करने में वेंडर्स का सहयोग लिया गया लेकिन उससे गुणवत्ता और कीमत पर असर पड़ रहा था।

वर्ष 2014 में कंपनी ने अपनी खुद की फैक्ट्री खोली और उसके अगले साल के शुरुवाती महीनों में ही कुकस्टोव का उत्पादन शुरू हो गया। एक बार जब ग्रीनवे के उत्पाद बाजार में बिकने के लिए रखे गए तो उसे लोगों ने हाथों हाथ लिया।

सफलता को चार चांद लगा

ग्रीनवे का ये प्रयास दुनिया भर में मीडिया के आकर्षण का केंद्र बन गया। बिजनेस टुडे पत्रिका ने जुनेजा को वर्ष 2017 में कारोबारी दुनिया की सबसे सशक्त महिला बताया। इकोनॉमिक टाइम्स की तरफ से अंकित माथुर को साल 2016 में अंडर-40 अवार्ड से नवाजा गया। सीएनएन ने वर्ष 2017 में ग्रीनवे पर एक रिपोर्ट की और जिक्र किया कि किस तरह से इस उत्पाद की बिक्री 9 मिलियन डॉलर (लगभग 58 करोड़) तक पहुंच गई है।

ग्रीनवे की माने तो उसके प्रयास का ये छोटा सा उहाहरण है। आने वाले सालों में स्वच्छ और हरित ऊर्जा के लिए  उसके  तमाम प्रयास लोगों के सामने होंगे। ग्रीनवे की कोशिश है कि उसके उत्पादों से ना सिर्फ पर्यावरण को फायदा हो बल्कि लोगों की जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार हो सके।

फोटो  सौजन्य – सोशल मीडिया

न्यूज़ सोर्स : पंखुड़ी अय्यर (गणतंत्र भारत) बेंगलुरू

https://www.gantantrabharat.com

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments