आशीष मिश्र नई दिल्ली : कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने के लिए पहल कर दी है। राहुल गांधी ने नई दिल्ली के कॉंस्टीट्यूशन क्लब में विपक्षी नेताओँ को नाश्ते पर बुलाया। बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी को छोड़ कर 15 विपक्षी पार्टियों के प्रतिनिधि इस आयोजन में शरीक हुए। नाश्ते के बाद राहुल गांधी समेत सभी विपक्षी नेता साइकिल से संसद की तरफ चल पड़े।
राहुल की इस पहल का मकसद घोषित तौर पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार को संसद में एकजुट होकर घेरने का है ताकि महंगाई, पेगासस और कोविड को लेकर सरकार पर दबाव बनाया जा सके। लेकिन राजनीतिक गलियारे में राहुल गांधी के इस न्यौते के कई दूसरे मायने भी बताए जा रहे हैं।
दरअसल, ये पूरी कवायद तृणमूल नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उस बयान के बाद शुरू हुई जिसमें भारतीय जनता पार्टी से निपटने के लिए विपक्षी दलों को एक होने की सलाह दी गई थी। ममता बनर्जी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी से मुलाकात भी की थी। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी इंडियन एक्सप्रेस को दिए साक्षात्कार में साफ तौर पर कहा था कि कांग्रेस के बिना विपक्ष का गठबंधन कमजोर होगा और कांग्रेस को हर हाल में गठबंघन का हिस्सा बनना होगा। तेजस्वी यादव ने सभी विपक्षी नेताओँ से अपना इगो दूर रखकर विपक्षी एकता और भारतीय जनता पार्टी को करारा जवाब देने के लिए एकजुट होने की अपीव भी की थी। इससे पहले, शिवसेना ने विपक्षी दलों की एकजुटता की वकालत करते हुए इसकी कमान एनसीपी नेता शरद पवार या तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी के हाथों में सौंपने की बात कही थी।
राहुल क्या मैसेज देना चाहते हैं
राजनीतिक पंडित राहुल की इस पहल को कई आयामों से देखते हैं। पहला, राहुल गांधी ने इस बहाने सभी विपक्षी दलों को ये संदेश देने की कोशिश की है कि खेमों में बंटे विपक्ष के लिए भारतीय जनता पार्टी से मुकाबला करना मुश्किल होगा। नरेंद्र मोदी और सरकार को घेरना है तो विपक्षी दलों को एक ठोस और एकजुट रणीति पर काम करना होगा। राहुल जानते हैं कि इस वक्त देश में मुद्दों की कमी नहीं है और मोदी सरकार के पास बहुत से मुद्दों के कोई जवाब नहीं हैं। सरकार पर दबाव बनाने के लिए बस उन मुद्दों पर एकजुट कोशिश की जरूरत है।
जनता दल यू के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीनीश कुमार ने पेगासिस मामले में जांच कराने की मांग करके ये जाहिर कर दिया है कि बीजेपी के सहयोगी दलों में भी पैगासस को लेकर भिन्न राय है और सभी दल सरकार के साथ नहीं हैं। नीतीश कुमार की इस मांग से विपक्षी दलों की पहले से चली आ रही जांच की मांग को और मजबूती मिली है।
दूसरी दलील, राहुल गांधी इस पहल से विपक्षी गठबंधन में अपना कद नापने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, जानकारों का मानना है कि राहुल गांधी एक सरल राजनेता हैं और उनमें किसी तरह का इगों नहीं है। उनके साथ विपक्षी दलों को तालमेल बैठाने में कोई ज्यादा दिक्कत नहीं होने वाली। लेकिन शरद पवार, और ममता बर्जी जैसे दिग्गज नेताओं के बीच राहुल गांधी के नेतृतव को लेकर एकराय बनना मुश्किल है।
राजनीतिक विश्लेषक सुधा रामाचंद्रन का कहना है कि, राहुल गांधी की ये पहल 2024 में भारतीय जनता पार्टी से मुकाबले के लिए एक महागठबंधन की बुनियाद है। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी इस पहल का असर दिखेगा। समाजवादी पार्टी ने इस बैठक में शरीक होकर अपनी तरफ से एक सकारात्मक संकेत जरूर दिया है। बहुजन समाज पार्टी ने पहले ही घोषित कर दिया है कि वो अकेले चुनाव लड़ेगी। आम आदमी पार्टी की पूरी राजनीति ही कांग्रेस विरोध की रही है। उन्होंने सत्ता कांग्रेस से छीनी। जिस अन्ना आंदोलन का फायदा उठा कर वे सत्ता में आए उस समय भी केंद्र में मनमोहम सिंह की सरकार थी। उन्हें पता है कि कांग्रेस का वोट बैंक ही उनका वोट बैंक है। केजरीवाल ममता बनर्जी के नाम पर तो गठबंधन में शामिल हो सकते हैं लेकिन राहुल गांधी के नेतृत्व का सीधा मतलब आम आदमी पार्टी की राजनीतिक जमीन का खिसकना है।
अब देखना ये होगा कि मोदी से मुकाबले के लिए विपक्षी एकता का ये प्रयोग किस हद तक और कितने प्रभावी तरीके से काम कर पाता है। पहली परीक्षा तो बस अगले कुछ महीनों के बाद पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव में ही होने वाली है।
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