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12 साल की बोधना ने रचा चेस का नया इतिहास

शतरंज की दुनिया में अक्सर ग्रैंडमास्टर्स और इंटरनेशनल मास्टर्स का नाम सुनाई देता है। लेकिन जब महज़ 10 साल की बच्ची किसी अनुभवी ग्रैंडमास्टर को हराकर नया कीर्तिमान स्थापित करती है, तो यह इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाता है। ऐसा ही कर दिखाया है भारतीय मूल की ब्रिटिश शतरंज खिलाड़ी बोधना शिवानंदन ने।

सिर्फ 10 साल 5 महीने 3 दिन की उम्र में बोधना ने ब्रिटिश शतरंज चैंपियनशिप 2025 में 60 वर्षीय ग्रैंडमास्टर पीटर वेल्स को मात देकर एक ऐसा रिकॉर्ड बना दिया, जिसे तोड़ना आने वाले वर्षों तक मुश्किल होगा।


🎯 रिकॉर्ड तोड़ उपलब्धि

📌 रिकॉर्ड – बोधना ने अब तक का सबसे कम उम्र में ग्रैंडमास्टर को हराने वाली लड़की का खिताब अपने नाम किया।
📌 तारीख और जगह – 2025, ब्रिटिश शतरंज चैंपियनशिप, लिवरपूल।
📌 विरोधी – पीटर वेल्स (60 वर्ष के अनुभवी ग्रैंडमास्टर)।

इससे पहले यह रिकॉर्ड अमेरिका की कारिसा यिप के पास था, जिन्होंने 2019 में 10 साल 11 महीने 20 दिन की उम्र में यह उपलब्धि हासिल की थी। लेकिन बोधना ने यह रिकॉर्ड 6 महीने पहले ही तोड़ दिया


🌍 भारतीय मूल, ब्रिटिश पहचान

बोधना का जन्म एक भारतीय परिवार में हुआ। उनके पिता शिवानंदन वेलायुथम आईटी पेशेवर हैं और उनके परिवार की जड़ें तमिलनाडु के त्रिची से जुड़ी हुई हैं। 2007 में पूरा परिवार लंदन चला गया और वहीं से बोधना की पहचान एक शतरंज सनसनी के रूप में बनने लगी।


🏁 शतरंज से पहला परिचय

किसी ने सोचा भी नहीं था कि COVID-19 लॉकडाउन के दौरान खिलौनों में मिला एक शतरंज सेट बोधना की जिंदगी बदल देगा।


🏆 बोधना की शुरुआती उपलब्धियाँ


🎖️ नया मील का पत्थर

पीटर वेल्स को हराकर बोधना ने न केवल रिकॉर्ड तोड़ा बल्कि


🙌 वैश्विक प्रतिक्रिया

इस ऐतिहासिक जीत के बाद पूरी दुनिया से उन्हें बधाई संदेश मिले।


🔬 क्यों खास है यह उपलब्धि?

  1. इतनी छोटी उम्र में रणनीतिक सोच और धैर्य रखना।
  2. अनुभवी ग्रैंडमास्टर के खिलाफ जीत दर्ज करना।
  3. भारतीय मूल की लड़की का ब्रिटेन में शतरंज की सबसे बड़ी उपलब्धि हासिल करना।

🌟 भविष्य की संभावनाएँ

विशेषज्ञों का मानना है कि बोधना आने वाले वर्षों में


📰 मीडिया और लोगों की प्रतिक्रिया

ब्रिटेन से लेकर भारत तक हर जगह उनके नाम की चर्चा है।


💡 प्रेरणा

बोधना की कहानी हर उस बच्चे और माता-पिता के लिए प्रेरणा है, जो यह सोचते हैं कि खेल सिर्फ समय बिताने के लिए होते हैं। शतरंज जैसे मानसिक खेल से बच्चों का दिमाग विकसित होता है और सही मार्गदर्शन मिलने पर वे अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँच सकते हैं।


निष्कर्ष

बोधना शिवानंदन की यह जीत सिर्फ एक रिकॉर्ड नहीं है, बल्कि यह साबित करती है कि उम्र सिर्फ एक संख्या है। समर्पण, जुनून और सही मार्गदर्शन से कोई भी ऊँचाइयाँ छू सकता है।

10 साल की बच्ची द्वारा 60 साल के ग्रैंडमास्टर को हराना यह बताता है कि भविष्य की शतरंज दुनिया में बोधना एक बड़ा नाम बनने वाली हैं।

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