Thursday, November 20, 2025
Google search engine
Homeहेल्थMIT की क्रांतिकारी खोज: शुगर लेवल खुद करेगा बैलेंस

MIT की क्रांतिकारी खोज: शुगर लेवल खुद करेगा बैलेंस

MIT के वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक शानदार तकनीकी सफलता हासिल की है – एक ऐसा इम्प्लांटेबल (त्वचा के नीचे फिट लगाने वाला) डिवाइस बनाया है, जो ऑटोमैटिक तरीके से ब्लड शुगर यानी ब्लड ग्लूकोज लेवल को कंट्रोल कर सकता है। यह खोज विशेष रूप से टाइप‑1 और टाइप‑2 डायबिटीज़ के मरीजों के लिए बेहद राहत भरी है। आइए इस तकनीकी चमत्कार को करीब से समझते हैं।


🧬 MIT का नया इम्प्लांटेबल डिवाइस: एक परिचय

  • नाम (अभी तक कोई ब्रांड नाम नहीं): वैज्ञानिक इसे आम तौर पर “ग्लूकागन इन्जेक्शन डिवाइस” कह रहे हैं।
  • कार्यक्षमता: यह डिवाइस आपके शरीर में ग्लूकागन (glucagon) या एपिनिफ्रीन (epinephrine) जैसे आपातकालीन दवाओं को रिलीज़ कर सकता है जब ब्लड शुगर अत्यधिक गिर जाता है ।
  • वर्तमान स्वरूप: चाँदी के सिक्के के आकार के बराबर, 3D प्रिंटेड पॉलिमर से बना, जिसमें एक पाउडर ग्लूकागन का भंडारण होता है ।

कैसे काम करता है यह रिमोट-ट्रिगर डिवाइस

  1. पाउडर ग्लूकागन: सामान्य ग्लूकागन लिक्विड की तरह जल्दी खराब हो जाता है। MIT ने इसे पाउडर रूप में विकसित किया, जो लंबे समय तक स्थिर रहता है ।
    1. शरीत के नीचे इम्प्लांटेशन: चाँदी के सिक्के के आकार जैसा यह डिवाइस त्वचा के बिल्कुल नीचे कमजोर कट के माध्यम से इम्प्लांट किया जाता है।
    1. शेप–मेमोरी अलॉय का आवरण: एक न्यूर-टाइटेनियम (निकेल–टाइटेनियम) की परत, जो गर्म होने पर 40°C तापमान पर U-स्‍टाइल में बदल जाती है और गैस-भरा सेल खोल देती है
    1. रिमोट ट्रिगरिंग: डिवाइस में वायर्सलेस RF (रडियो फ्रीक्वेंसी) एंटीना होता है। इसे दो तरीकों से ट्रिगर किया जा सकता है:
    • Continuous Glucose Monitor (CGM) जैसे सेंसर के जरिए जब ग्लूकोज बहुत नीचे जाए।
    • मैन्युअल ट्रिगर के रूप में, जिससे कभी भी सक्रिय किया जा सके।

क्या-क्या साबित किया है MIT की टीम ने?

  • चूहों पर परीक्षण: डायबिटिक चूहों में इम्प्लांट किया गया डिवाइस, ग्लूकोज लेवल खतरनाक रूप से कम होने पर ट्रिगर किया गया।
    • रिज़ल्ट: 10 मिनट के भीतर ग्लूकोज सामान्य स्तर पर पहुँच गया ।
  • दूसरी दवा – एपीनेफ्रीन: आपात स्थिति में दिल का अटैक या अनेफिलेक्सिस रोकने के लिए एपिनिफ्रीन भी उसी डिवाइस से रिलीज़ हो सकती है। चूहों के शरीर में 10 मिनट में हार्ट रेट में वृद्धि देखी गई ।
  • Biocompatibility: चार सप्ताह तक डिवाइस रहने के बावजूद भी, शरीर ने इसे स्वीकार किया। अंदरूनी कोटिंग-सर्द कवक जैसी पड़ी लेकिन संशोधन सफल रहा ।

क्या यह इंसानों के लिए सुरक्षित है?

  • वर्तमान चरण: अभी यह प्रयोग सिर्फ पशुओं में सिद्ध हुआ है।
  • आगामी कदम:
    • जीवनकाल विस्तार: अब छह महीनों से लेकर एक वर्ष तक डिवाइस की कार्यक्षमता बनाए रखने की कोशिश की जा रही है ।
    • नए पशु अध्ययन: अधिक बड़े पशु मॉडलों में परीक्षण।
    • इंसानी क्लिनिकल परीक्षण: MIT का लक्ष्य अगली तीन सालों में इस डिवाइस पर मानव क्लिनिकल ट्रायल शुरू करना है।

क्यों यह क्रांतिकारी है?

1. हाइपोग्लाइसीमिया से तत्काल राहत

टाइप‑1 और टाइप‑2 डायबिटीज़ दोनों में कभी-कभी ब्लड शुगर अचानक लैंड डाउन हो सकता है, जिससे बेहोशी, हार्ट अटैक या मृत्यु हो सकती है। बहुत बार मरीज समय पर ग्लूकागन इंजेक्शन नहीं लगा पाता ​। इसका यह डिवाइस एक आपातकालीन सेफ्टी नेट प्रदान करता है।

2. रात में सुरक्षित नींद

कम शुगर रात को सोते समय पता नहीं चल पाता। इससे ‘साइलेंट क्रैश’ व हाइपोग्लाइसीमिया हो सकता है। इस डिवाइस से ऐसी स्थिति से सुरक्षा मिलेगी और परिवार को भी दिल की शांति ।

3. बच्चों के लिए फायदेमंद

बच्चे खुद इंजेक्शन नहीं लगा सकते, या भूल जाते हैं। यह डिवाइस परेशानी को कम करता है और आत्म-विश्वास बढ़ाता है।

4. विस्तारित उपयोग

  • Glucagon के अलावा, एपिनिफ्रीन जैसी दूसरी आपातकालीन दवाओं के लिए भी इसे उपयोग में लाया जा सकता है ।
  • संभावित रूप से अन्य जीवनरक्षक ड्रग्स के लिए भी इसका मंच तैयार किया जा सकता है।

तकनीकी बनावट – गहराई में समझ

घटककार्य
3D‑प्रिंटेड रेज़रवायरपाउडर ग्लूकागन/एपिनिफ्रीन संग्रहित
शेप‑मेमोरी पोलिमर40°C वायरल से U‑आकार लेता है
RF एंटीनावायर्सलेस ट्रिगरिंग/सिगनल रिसीविंग
पाउडर फार्मूलालिक्विड की तुलना में स्थिर और लंबे समय तक टिकाऊ
वायरलेस इंटरफेसCGM सिस्टम से जुड़कर ऑटोमेशन संभव

यह डिजाइन पटाखों-गरबों जैसा सरल नज़र आने वाला है लेकिन इसके पीछे सूक्ष्म नियोजन और वैज्ञानिक बुद्धिमत्ता समाहित है।


किन चुनौतियों का है सामना?

  • डिवाइस की उम्र बढ़ाना: फिलहाल 4–6 हफ्तों तक काम करता है। इसे एक साल से अधिक बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है ।
  • फाइब्रोसिस (Scar Tissue): शरीर में इम्प्लांट को घेरने वाली फाइब्रोसिस भी तेज या धीमा रिलीज़ को प्रभावित कर सकती है।
  • सुरक्षा, सर्टिफिकेशन: FDA व दूसरे हेल्थ एजेंसियां इंसान में परीक्षण से पहले कई मुकाम पास करती हैं।
  • RF इंटरफेरेंस: घर, मोबाइल जैसे उपकरणों से सिग्नल डिस्टर्ब हो सकते हैं।
  • सस्ता व बड़े स्तर पर उत्पादन: इसे केवल अमीर मरीज कितने खरीद पाएंगे? बड़े पैमाने पर उत्पादन और किफ़ायती बनाना जरूरी।

तुलना और अन्य समाधान

  • CGM + इंसुलिन पंप (Hybrid Closed‑Loop): Dexcom, Tandem t:slim X2 जैसे सिस्टम उपयोग में हैं, जो रोटीन ग्लूकोज नियंत्रित करते हैं लेकिन हाइपोग्लाइसीमिया में आपात प्रतिक्रिया नहीं देते ।
  • ग्लूकोज‑रिस्पॉन्सिव इंसुलिन (GRI): $MK-2640 जैसे एनालॉग दवाओं पर MIT ने मॉडल तैयार किया, जो शुगर पर प्रतिक्रिया करती हैं ।
  • इम्प्लांटेबल इंसुलिन सेल्स: MIT और Boston Children’s Hospital द्वारा अन्य टेस्ट किये गए, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक ऑक्सीजन यूनिट्स का उपयोग हुआ ।

यह MIT का नया ग्लूकागन डिवाइस इन सभी समाधानों से विशिष्ट रूप से आपातकालीन ब्लड शुगर-रिलीफ पे केंद्रित है।


निष्कर्ष: यह हमारे लिए कितना अहम है?

MIT का यह डिवाइस एक छोटा लेकिन अत्यंत प्रभावशाली कदम है। यह दिन‑प्रतिदिन की इन्सुलिन थैरेपी को प्रभावित नहीं करता, बल्कि उन खास हालातों में जीवन रक्षा करता है जब ब्लड शुगर “सान्प की तरह अचानक गिरता है” – यानी “हाइपोग्लाइसीमिया”।

  • रात को सुरक्षित नींद
  • बच्चों में आत्म-निर्भरता
  • आपात स्थिति में प्रवेश

यह सभी फीचर्स इस डिवाइस को एक क्रांतिकारी एन्हांसमेंट बनाते हैं।

🚀 MIT की अगली तीन सालों में मानव क्लिनिकल ट्रायल की योजना और अगर पास हो जाती है, तो आने वाले समय में यह तकनीकी बदलाव डायबिटीज़ के इलाज के तरीके को मोड़ सकता है।


🔍 नजर आने वाले सवाल

  • क्या यह डिवाइस कीमत में आम लोगों तक पहुँच पाएगा?
  • क्या 1 या 4 इंजेक्शन वाली क्षमता पर्याप्त है?
  • क्या मल्टी कबाबी (एकाधिक दवाओं का रिलीज़) आगे संभव होगा?

MIT की इस खोज पर सेहत जगत में नज़र बनी हुई है। जल्द ही मानव परीक्षण और अन्य तकनीकी सुधारों के साथ इसका क्लिनिकल उपयोग संभव हो जाएगा। अगर यह सफल हो गया, तो डायबिटीज़ की जिंदगी भी एक दिन नॉर्मल हो सकती है।

यह भीपढ़ें- नरसिम्हा की दहाड़ अब थिएटरों में, धर्मयुद्ध का मंचन तय

“डायबिटीज़ नियंत्रण के नवप्रवर्तन: नई खोज, नई आशा” — इस तकनीक की यही वजह बन सकती है।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

Recent Comments