Tuesday, December 2, 2025
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ब्रॉन्ज मेडलिस्ट डॉ. वेस पेस का निधन, देश ने खोया खेल रत्न

भारत के खेल इतिहास में कुछ नाम ऐसे दर्ज हैं जो कई पीढ़ियों को प्रेरणा देते हैं। उन्हीं महान हस्तियों में से एक थे वेस पेस (Ves Paes) – भारतीय हॉकी टीम के पूर्व मिडफील्डर, ओलंपिक पदक विजेता और महान टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस के पिता। उनका 80 वर्ष की उम्र में निधन भारतीय खेल जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

वेस पेस सिर्फ़ एक हॉकी खिलाड़ी ही नहीं थे, बल्कि एक ऐसे मल्टी-टैलेंटेड एथलीट थे जिन्होंने फुटबॉल, क्रिकेट और रग्बी जैसे कई खेलों में भी अपनी पहचान बनाई। उनके व्यक्तित्व का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि उन्होंने केवल खुद खेलों में योगदान नहीं दिया बल्कि नई पीढ़ी के खिलाड़ियों को तैयार करने और खेल प्रशासन में सुधार लाने का भी काम किया।


1972 म्यूनिख ओलंपिक और कांस्य पदक की ऐतिहासिक उपलब्धि

1972 का म्यूनिख ओलंपिक भारतीय हॉकी के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ। उस समय भारतीय हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीतकर देश को गौरवान्वित किया। इस ऐतिहासिक टीम का हिस्सा थे वेस पेस, जो मिडफील्डर की पोजिशन पर खेलते थे।

भारतीय हॉकी का वह दौर बेहद प्रतिस्पर्धी था। पाकिस्तान, जर्मनी और नीदरलैंड्स जैसी टीमों से मुकाबला आसान नहीं था। लेकिन उस कठिन दौर में भी भारत ने अपना दबदबा बनाए रखा। वेस पेस ने अपने शानदार प्रदर्शन से टीम के संतुलन को मज़बूती दी और टीम को पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


मल्टी-टैलेंटेड स्पोर्ट्समैन

वेस पेस को खेल जगत में एक ऑल-राउंडर खिलाड़ी के रूप में जाना जाता है। हॉकी के अलावा उन्होंने फुटबॉल, क्रिकेट और रग्बी में भी सक्रिय भागीदारी की।

  • हॉकी में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया और ओलंपिक पदक जीता।
  • फुटबॉल और क्रिकेट में भी उन्होंने क्लब और राज्य स्तर पर खेला।
  • रग्बी में उनका योगदान इतना बड़ा था कि बाद में वह भारतीय रग्बी फुटबॉल संघ के अध्यक्ष भी बने।

यह बहुमुखी प्रतिभा उन्हें भारतीय खेल जगत में एक अनोखा स्थान देती है।


खेल प्रशासन और नेतृत्व में योगदान

वेस पेस सिर्फ़ खिलाड़ी नहीं रहे, बल्कि उन्होंने स्पोर्ट्स एडमिनिस्ट्रेशन में भी सक्रिय भूमिका निभाई।

  • 1996 से 2002 तक उन्होंने भारतीय रग्बी फुटबॉल संघ के अध्यक्ष पद पर काम किया।
  • वह कलकत्ता क्रिकेट एंड फुटबॉल क्लब के अध्यक्ष भी रहे, जो दुनिया के सबसे पुराने खेल क्लबों में से एक है।
  • उन्होंने एशियाई क्रिकेट परिषद, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) और भारतीय डेविस कप टीम में एक स्पोर्ट्स मेडिसिन डॉक्टर के तौर पर भी सेवाएँ दीं।

यह बताता है कि वेस पेस खेलों को सिर्फ़ मैदान तक सीमित नहीं रखते थे, बल्कि खिलाड़ियों की फिटनेस, स्वास्थ्य और करियर को आगे बढ़ाने के लिए भी समर्पित थे।


परिवार और खेल विरासत

वेस पेस ने जेनिफर डटन से शादी की, जो पूर्व भारतीय बास्केटबॉल खिलाड़ी और बंगाली कवि माइकल मधुसूदन दत्त की परपोती थीं। इस तरह उनका परिवार खेल और संस्कृति दोनों का संगम बन गया।

उनके बेटे लिएंडर पेस भारतीय टेनिस इतिहास के सबसे चमकते सितारों में से एक बने। लिएंडर ने 1996 अटलांटा ओलंपिक में टेनिस (सिंगल्स) में कांस्य पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया।

इस तरह वेस पेस और लिएंडर पेस भारत के इतिहास में एकमात्र पिता-पुत्र की जोड़ी बने जिन्होंने अलग-अलग ओलंपिक खेलों में पदक जीतकर देश को गौरवान्वित किया।


डॉक्टर और गाइड के रूप में वेस पेस

वेस पेस की पहचान केवल एक खिलाड़ी की नहीं थी। वह स्पोर्ट्स मेडिसिन डॉक्टर भी थे। उन्होंने अपने ज्ञान और अनुभव से कई खिलाड़ियों को फिटनेस और चोटों से उबरने में मदद की।

उनके गाइडेंस में कई युवा खिलाड़ियों ने अपने खेल करियर की शुरुआत की और आगे बढ़े। वह हमेशा मानते थे कि “एक स्वस्थ खिलाड़ी ही अपने खेल में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकता है।”


वेस पेस की खासियतें

  1. खेलों के प्रति जुनून – हॉकी से लेकर टेनिस तक उनका परिवार खेलों के लिए समर्पित रहा।
  2. नेतृत्व क्षमता – उन्होंने कई खेल संगठनों को नेतृत्व दिया।
  3. नवाचार और समर्पण – स्पोर्ट्स मेडिसिन में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।
  4. खेलों की बहुमुखी समझ – उन्होंने कई खेलों में एक साथ योगदान दिया।

निधन और खेल जगत की प्रतिक्रिया

80 साल की उम्र में वेस पेस का निधन भारतीय खेल जगत के लिए एक गहरा सदमा है। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे और कोलकाता के एक निजी अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।

उनके निधन पर खेल जगत की कई हस्तियों ने शोक व्यक्त किया। हॉकी इंडिया, टेनिस फेडरेशन और क्रिकेट समुदाय ने उनके योगदान को याद किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी।


वेस पेस की विरासत

वेस पेस ने भारतीय खेलों को नई दिशा दी। उन्होंने मैदान पर खिलाड़ी के रूप में और मैदान के बाहर प्रशासक व डॉक्टर के रूप में अपनी छाप छोड़ी।

उनकी विरासत केवल लिएंडर पेस तक सीमित नहीं है, बल्कि हर उस खिलाड़ी तक है जिसे उन्होंने मार्गदर्शन दिया।

उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि खेल केवल एक प्रतियोगिता नहीं है, बल्कि यह अनुशासन, समर्पण और राष्ट्र के लिए गौरव का प्रतीक है।


निष्कर्ष

वेस पेस भारतीय खेलों के सच्चे लीजेंड थे। हॉकी में ओलंपिक पदक जीतने से लेकर टेनिस में अपने बेटे लिएंडर पेस को ओलंपिक विजेता बनाने तक उनकी यात्रा प्रेरणादायक रही।

उनका जीवन एक ऐसी कहानी है जिसमें संघर्ष, सफलता, नेतृत्व और सेवा – सब कुछ समाहित है।

आज जब हम वेस पेस को अलविदा कहते हैं, तो उन्हें केवल एक खिलाड़ी के रूप में नहीं बल्कि भारतीय खेलों के संरक्षक और मार्गदर्शक के रूप में याद करेंगे।

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