भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था में अब तक का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक बदलाव होने जा रहा है। केंद्रीय कैबिनेट ने हाल ही में ‘विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण बिल’ को मंजूरी दे दी है। यह वही प्रस्तावित कानून है, जिसे पहले हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया (HECI) बिल के नाम से जाना जाता था। नए नाम और नए ढांचे के साथ यह बिल भारत की यूनिवर्सिटी और कॉलेज सिस्टम की तस्वीर बदलने की क्षमता रखता है।
सरकार का मानना है कि यह कदम NEP-2020 (नई शिक्षा नीति) के विजन को जमीन पर उतारने की दिशा में एक बड़ा मील का पत्थर साबित होगा। लेकिन सवाल यह है कि यह बिल आखिर है क्या, इससे क्या बदलेगा और छात्रों, शिक्षकों व संस्थानों पर इसका क्या असर पड़ेगा? आइए विस्तार से समझते हैं।
क्यों लाया गया विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण बिल?

भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था लंबे समय से मल्टी-रेगुलेटर सिस्टम से जूझ रही है। अभी तक:
- UGC (यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन) – यूनिवर्सिटी शिक्षा
- AICTE (ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन) – तकनीकी शिक्षा
- NCTE (नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन) – शिक्षक शिक्षा
जैसे अलग-अलग रेगुलेटर अलग-अलग नियम बनाते रहे हैं। इससे:
- नियमों की जटिलता बढ़ी
- संस्थानों पर अनावश्यक बोझ पड़ा
- क्वालिटी से ज्यादा प्रक्रिया पर जोर रहा
नई शिक्षा नीति 2020 ने साफ कहा था कि भारत को एक सरल, पारदर्शी और मजबूत सिंगल रेगुलेटर सिस्टम की जरूरत है। इसी सोच से विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण बिल सामने आया।
क्या है विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण?
यह एक सिंगल हायर एजुकेशन रेगुलेटर होगा, जो देश की पूरी उच्च शिक्षा व्यवस्था की निगरानी करेगा।
कैबिनेट से जुड़े एक अधिकारी के अनुसार:
“विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण की स्थापना करने वाले बिल को कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है।”
इस नए अधीक्षण (Commission) का उद्देश्य शिक्षा को नियंत्रित करना नहीं, बल्कि गुणवत्ता, पारदर्शिता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है।
तीन बड़े काम, जिन पर रहेगा फोकस
सरकार के प्रस्ताव के मुताबिक, विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण के मुख्य रूप से तीन कार्य होंगे:

1️⃣ रेगुलेशन (Regulation)
अब उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए नियम:
- सरल होंगे
- कम दखल वाले (Less intrusive) होंगे
- पारदर्शी और टेक्नोलॉजी आधारित होंगे
इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि संस्थान डर के बजाय भरोसे के माहौल में काम करें।
2️⃣ एक्रेडिटेशन (Accreditation)
अब कॉलेज और यूनिवर्सिटी की गुणवत्ता का मूल्यांकन:
- मजबूत मानकों के आधार पर होगा
- नियमित अंतराल पर होगा
- अंतरराष्ट्रीय स्तर से मेल खाता होगा
इससे छात्रों को बेहतर संस्थान चुनने में आसानी होगी और संस्थानों को गुणवत्ता सुधारने की प्रेरणा मिलेगी।
3️⃣ प्रोफेशनल और अकादमिक स्टैंडर्ड
शिक्षकों, पाठ्यक्रमों और डिग्रियों के लिए:
- स्पष्ट और समान मानक तय किए जाएंगे
- इंडस्ट्री और ग्लोबल जरूरतों के अनुसार कोर्स अपडेट होंगे
इससे शिक्षा और रोजगार के बीच की खाई कम होगी।
फंडिंग क्यों रेगुलेटर से अलग रखी गई?
एक अहम बात यह है कि फंडिंग को रेगुलेटर के दायरे से बाहर रखा गया है।
यानी:
- पैसा बांटने का अधिकार शिक्षा मंत्रालय या संबंधित प्रशासनिक मंत्रालय के पास रहेगा
- रेगुलेटर सिर्फ गुणवत्ता और मानकों पर फोकस करेगा
NEP-2020 भी यही कहती है कि:
“रेगुलेशन, एक्रेडिटेशन, फंडिंग और अकादमिक स्टैंडर्ड तय करने जैसे काम अलग-अलग, स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा किए जाने चाहिए।”
इससे हितों के टकराव (Conflict of Interest) की आशंका कम होगी।
पहले भी हो चुकी है HECI पर चर्चा
यह विचार बिल्कुल नया नहीं है।
साल 2018 में:
- UGC एक्ट को खत्म करने
- और उसकी जगह HECI की स्थापना
से जुड़ा एक ड्राफ्ट बिल पब्लिक डोमेन में डाला गया था।
उस वक्त:
- स्टेकहोल्डर्स से सुझाव मांगे गए
- शिक्षाविदों और संस्थानों से राय ली गई
हालांकि, उस समय यह बिल कानून का रूप नहीं ले सका।
2021 के बाद फिर तेज हुई कोशिशें
जुलाई 2021 में धर्मेंद्र प्रधान के केंद्रीय शिक्षा मंत्री बनने के बाद:
- NEP-2020 को लागू करने पर तेजी आई
- सिंगल रेगुलेटर की जरूरत पर दोबारा जोर दिया गया
अब उसी प्रक्रिया का नतीजा है विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण बिल।
NEP-2020 से सीधा कनेक्शन
नई शिक्षा नीति 2020 में साफ लिखा है कि:
“भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए रेगुलेटरी सिस्टम में पूरी तरह से बदलाव जरूरी है।”
नीति यह भी कहती है कि:
- रेगुलेटर का काम नियंत्रण नहीं, मार्गदर्शन होना चाहिए
- संस्थानों को अकादमिक स्वतंत्रता मिलनी चाहिए
- गुणवत्ता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए
विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण बिल इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित है।
छात्रों को क्या फायदा होगा?
इस बिल के लागू होने के बाद छात्रों को:
- बेहतर क्वालिटी एजुकेशन
- इंटरनेशनल लेवल की डिग्री
- स्किल-ओरिएंटेड कोर्स
- ज्यादा विकल्प और फ्लेक्सिबिलिटी
मिलने की उम्मीद है।
साथ ही, फर्जी और कमजोर संस्थानों पर सख्ती से कार्रवाई संभव होगी।
शिक्षकों और संस्थानों के लिए क्या बदलेगा?
- शिक्षकों के लिए प्रोफेशनल स्टैंडर्ड स्पष्ट होंगे
- संस्थानों को नवाचार और रिसर्च की ज्यादा आजादी मिलेगी
- अनावश्यक कागजी कार्रवाई कम होगी
यानी सिस्टम कंट्रोल से ज्यादा कोलैबोरेशन पर आधारित होगा।
क्या खत्म हो जाएंगे UGC, AICTE और NCTE?
इस बिल के लागू होने के बाद:
- मौजूदा रेगुलेटर संस्थाएं समाप्त या विलय की जा सकती हैं
- उनकी भूमिकाएं नए अधीक्षण में समाहित होंगी
हालांकि, इसके ट्रांजिशन को लेकर सरकार चरणबद्ध प्रक्रिया अपनाएगी।
आलोचना और चिंताएं भी
कुछ शिक्षाविदों का मानना है कि:
- एक ही रेगुलेटर पर ज्यादा बोझ पड़ सकता है
- राज्यों की भूमिका कमजोर न हो जाए
सरकार का कहना है कि:
- संघीय ढांचे का ध्यान रखा जाएगा
- राज्यों और विश्वविद्यालयों को पर्याप्त स्वायत्तता मिलेगी
निष्कर्ष: शिक्षा सुधार की दिशा में बड़ा कदम
विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण बिल सिर्फ एक कानून नहीं, बल्कि भारत की उच्च शिक्षा को 21वीं सदी के अनुरूप ढालने की कोशिश है।
अगर इसे सही तरीके से लागू किया गया, तो:
- भारत की यूनिवर्सिटीज ग्लोबल रैंकिंग में ऊपर आ सकती हैं
- छात्रों को देश छोड़कर पढ़ाई के लिए जाने की जरूरत कम होगी
- “विकसित भारत” के सपने को मजबूत आधार मिलेगा
अब सबकी नजर इस बात पर है कि यह बिल संसद में कब पेश होता है और जमीनी स्तर पर इसे कैसे लागू किया जाता है।
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