Saturday, November 15, 2025
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फ्यूल-लेस भैंस बनी लोकतंत्र की सवारी

बिहार चुनाव 2025: जब किसान ने लोकतंत्र को दिया देहाती रंग

कटिहार (बिहार):
बिहार विधानसभा चुनाव के बीच एक ऐसा नज़ारा सामने आया जिसने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। जहां लोग मतदान के लिए कार, बाइक या स्कूटी से पहुंच रहे थे, वहीं कटिहार जिले के एक किसान आनंद सिंह ने वोट डालने का फैसला किया अपनी सबसे ख़ास सवारी – भैंस पर बैठकर!

यह दृश्य लोकतंत्र और किसानी संस्कृति का अद्भुत संगम था। अपने ठेठ देहाती अंदाज़ में किसान आनंद सिंह सिरसा स्थित अपने घर से लगभग ढाई किलोमीटर दूर स्थित मतदान केंद्र तक भैंस पर सवार होकर पहुंचे।


🐃 “फ्यूल-लेस सवारी” का संदेश – पर्यावरण और संस्कृति दोनों का सम्मान

आनंद सिंह ने बताया कि वे जानबूझकर भैंस पर सवार होकर वोट डालने निकले ताकि “किसानी की पहचान” और “पर्यावरण संरक्षण” दोनों का संदेश दे सकें। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा –

“यह हमारी असली सवारी है, इससे ही घर चलता है, दूध मिलता है, खाद बनती है और पेट भरता है। लग्जरी गाड़ियों से ज्यादा मजा तो इसमें है।”

उनकी भैंस सजी-धजी थी – माथे पर फूल, गले में घंटी, और आनंद सिंह ने भी पारंपरिक धोती-कुर्ता पहन रखा था। रास्ते भर लोग उनके इस अंदाज़ को देखकर मुस्कुराते रहे और कई लोगों ने फोटो और वीडियो भी बनाए जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गए।


📷 वायरल तस्वीर बनी प्रेरणा – सोशल मीडिया पर छाया किसान का अंदाज़

जैसे ही उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर पहुंची, लोगों ने जमकर तारीफ की।
किसी ने लिखा – “यह है असली बिहार, जहां परंपरा और लोकतंत्र साथ चलते हैं।”
तो किसी ने कहा – “किसान आनंद सिंह ने याद दिलाया कि सच्चा वोटर वही है जो अपने मूल से जुड़ा है।”

कुछ यूजर्स ने तो इसे “मेड इन इंडिया, मेड बाय नेचर” सवारी का नाम दिया, जबकि अन्य ने इसे “स्वदेशी गर्व का प्रतीक” बताया।


🌿 पॉल्यूशन-फ्री सवारी और आत्मनिर्भरता का उदाहरण

आनंद सिंह ने अपने बयान में यह भी कहा कि भैंस की सवारी न केवल पर्यावरण के अनुकूल है बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत का भी उदाहरण है।

“इस सवारी में कोई ईंधन नहीं लगता, न प्रदूषण फैलता है। ऊपर से दूध, दही, मट्ठा, घी और मिठाई सब इसी से मिलता है। इससे बेहतर गाड़ी कोई नहीं।”

उन्होंने हंसते हुए जोड़ा –

“हमारे पास कई भैंसें हैं, सब मेरी साथी हैं। आज मैंने इन्हें भी लोकतंत्र का हिस्सा बना दिया।”


🚩 देसी अंदाज़ में लोकतंत्र का जश्न

बिहार के ग्रामीण इलाकों में मतदान को लेकर जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है। लेकिन आनंद सिंह की यह भैंस यात्रा अलग ही मिसाल बन गई।
उनके इस कदम ने यह दिखाया कि भारत में लोकतंत्र सिर्फ शहरी या आधुनिक वोटर तक सीमित नहीं है, बल्कि गांवों की मिट्टी में भी उतनी ही गहराई से बसा है।

गांव के बुजुर्गों ने कहा –

“हमारे जमाने में बैलगाड़ी से वोट देने जाते थे, अब लोग कार से जाते हैं। लेकिन आनंद सिंह ने पुरानी परंपरा को फिर जिंदा कर दिया।”


💬 स्थानीय प्रशासन और मीडिया की प्रतिक्रिया

कटिहार प्रशासन ने भी इस घटना को सकारात्मक रूप में लिया। एक अधिकारी ने कहा –

“यह दृश्य बिहार की मिट्टी की खुशबू लिए हुए है। जब कोई व्यक्ति इतने उत्साह से वोट डालने आता है, तो यह लोकतंत्र की ताकत दिखाता है।”

स्थानीय मीडिया चैनलों ने भी आनंद सिंह के इस अनोखे अंदाज़ को “किसान का वोटिंग स्टाइल” कहते हुए विशेष कवरेज दिया।


📊 बिहार चुनाव में उत्साह का माहौल

बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों पर मतदान चल रहा है, और लोगों में गजब का जोश है।
कई मतदान केंद्रों पर महिलाएं, बुजुर्ग और युवा बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं।
लेकिन कटिहार का यह नज़ारा दिखाता है कि “बिहार में सिर्फ राजनीति नहीं, संस्कृति भी वोट डालती है।”

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💡 लोकतंत्र में भागीदारी का असली संदेश

किसान आनंद सिंह का यह कदम न सिर्फ वायरल खबर बन गया, बल्कि इससे एक गहरा संदेश भी गया –

  • वोट देना सिर्फ अधिकार नहीं, यह जिम्मेदारी भी है।
  • भले सवारी कोई भी हो – कार, बाइक, साइकिल या भैंस – लेकिन मतदान ज़रूर करना चाहिए।
  • पर्यावरण और परंपरा दोनों की रक्षा के साथ लोकतंत्र को मजबूत किया जा सकता है।

📢 आनंद सिंह बोले – “मैंने अपने तरीके से लोकतंत्र को सलाम किया”

आनंद सिंह ने कहा –

“मैं चाहता हूं कि लोग समझें, असली ताकत हमारे वोट में है। मैं भले भैंस पर बैठकर आया, लेकिन मेरा वोट किसी से कम नहीं।”

उन्होंने बताया कि उनके गांव के कई युवाओं ने उनका वीडियो देखकर प्रेरणा ली और मतदान केंद्र पहुंचे।


🌾 निष्कर्ष: भैंस पर बैठा किसान बना लोकतंत्र का ब्रांड एंबेसडर

आनंद सिंह का यह अनोखा अंदाज़ बिहार की उस तस्वीर को दिखाता है जिसमें परंपरा, पर्यावरण और लोकतंत्र तीनों एक साथ कदमताल करते हैं।
उनकी “फ्यूल-लेस सवारी” ने यह साबित कर दिया कि विकास का मतलब सिर्फ मशीनें नहीं, बल्कि अपनी जड़ों से जुड़ाव भी है।

इस घटना ने देशभर में एक प्यारा संदेश दिया –

“लोकतंत्र का असली इंजन न कार है, न बाइक… वह है किसान का दिल और उसकी ईमानदारी।”

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