विघ्नहर्ता, मंगलकर्ता, प्रथम पूज्य” — यह तीन विशेषण उस देवता के हैं, जिन्हें हम गणेश, गजानन, विनायक, सिद्धिविनायक और लंबोदर के नाम से जानते हैं।
हर शुभ कार्य की शुरुआत में जिनका नाम लिया जाता है, वे हैं भगवान श्रीगणेश।
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को जब उनका जन्म हुआ, तभी से यह दिन “गणेश चतुर्थी” कहलाया। इस दिन व्रत-पूजा करने और गणेश चतुर्थी कथा सुनने का विशेष महत्व है।
गणेश चतुर्थी कथा : भगवान गणेश का जन्म

प्राचीन समय की बात है।
देवी पार्वती स्नान के लिए जा रही थीं। उन्होंने अपने शरीर की मैल से एक सुंदर बालक की मूर्ति बनाई और उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर दी। उस बालक को आदेश दिया —
“जब तक मैं स्नान कर रही हूँ, तुम द्वार पर पहरा देना। किसी को भी भीतर मत आने देना।”
इसी समय भगवान शिव वहां आए। बालक ने उन्हें रोक दिया।
शिव जी ने समझाया, परंतु बालक अडिग रहा।
क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उसका सिर काट दिया।
देवी पार्वती जब बाहर आईं और यह दृश्य देखा, तो वे विलाप करने लगीं। उन्होंने कहा कि यदि मेरे पुत्र को जीवन नहीं मिला, तो मैं समस्त सृष्टि का विनाश कर दूँगी।

देवताओं के भय और पार्वती जी के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने आदेश दिया —
“उत्तर दिशा में जो पहला प्राणी सोता हुआ मिले, उसका सिर लेकर आओ।”
देवताओं को एक हाथी का शिशु मिला। उसका सिर लाकर शिव जी ने बालक के धड़ से जोड़ दिया।
इस प्रकार बालक पुनः जीवित हुआ।
शिव-पार्वती ने उसे पुत्र रूप में स्वीकार किया। शिव जी ने आशीर्वाद दिया —
“आज से यह बालक गणेश कहलाएगा और सृष्टि के हर कार्य में सबसे पहले पूज्य होगा।”
तभी से गणेश जी को “प्रथम पूज्य” का दर्जा मिला और चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाने लगा।
गणेश चतुर्थी व्रत और कथा का महत्व
- संपूर्ण फल की प्राप्ति:
 मान्यता है कि जो श्रद्धालु गणेश चतुर्थी का व्रत रखकर कथा सुनते हैं, उन्हें पूजा का संपूर्ण फल मिलता है।
- विघ्नों का नाश:
 गणपति जी “विघ्नहर्ता” हैं। कथा-पाठ से जीवन के संकट और बाधाएँ दूर होती हैं।
- नवीन आरंभ:
 विवाह, व्यापार, शिक्षा या किसी भी नए कार्य से पहले गणेश पूजन आवश्यक माना जाता है।
- आध्यात्मिक शांति:
 कथा का श्रवण मन को स्थिर करता है और भक्ति भाव बढ़ाता है।
व्रत विधि
- प्रातः स्नान कर घर को शुद्ध करें।
- गणपति की प्रतिमा स्थापित करें।
- धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें।
- दूर्वा, मोदक और लड्डू का भोग लगाएँ।
- कथा का श्रवण करें और अंत में आरती गाएँ।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलू
गणेश चतुर्थी केवल धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारत की संस्कृति का जीवंत उत्सव है।
- शिवाजी महाराज के काल में इस पर्व को समाजिक एकता के लिए प्रोत्साहित किया गया।
- लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान इसे सार्वजनिक पर्व बनाया, ताकि लोग संगठित हो सकें।
- आज भी महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा, गुजरात और उत्तर भारत के कई हिस्सों में इसे सामूहिक गणेशोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
गणेश जी के प्रतीकात्मक रूप
- हाथी का सिर – बुद्धि, ज्ञान और विवेक का प्रतीक।
- बड़ा पेट – सहनशीलता और उदारता का द्योतक।
- छोटे नेत्र – गहराई से देखने की शिक्षा।
- चूहे की सवारी – अहंकार पर नियंत्रण का संदेश।
- दूर्वा और मोदक प्रिय – सरलता और सादगी का प्रतीक।
आधुनिक समय में गणेश चतुर्थी
आज गणेशोत्सव केवल मंदिरों और घरों तक सीमित नहीं है।
- पर्यावरण मित्र गणेश प्रतिमाएँ बनाई जा रही हैं।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर कथा और आरती का प्रसारण होता है।
- समाज सेवा और रक्तदान शिविरों से यह पर्व सामाजिक योगदान का माध्यम भी बन रहा है।
कथा का आध्यात्मिक संदेश
- आज्ञा पालन का महत्व: गणेश जी ने माता की आज्ञा का पालन किया।
- त्याग और समर्पण: सिर कटने के बाद भी वे पुनः जीवन लेकर महान बने।
- संतुलन और शांति: शिव-पार्वती का संदेश है कि क्रोध नहीं, समाधान श्रेष्ठ है।
- हर शुरुआत में श्रद्धा: जीवन की हर नई राह पर पहले गणेश जी का स्मरण आवश्यक है।
निष्कर्ष
गणेश चतुर्थी की कथा केवल भगवान गणेश के जन्म की कहानी नहीं है, बल्कि यह भक्ति, धैर्य, विवेक और परिवारिक प्रेम की अमूल्य शिक्षा देती है।
जब श्रद्धालु इस कथा का श्रवण करते हैं, तो वे न केवल धार्मिक फल पाते हैं बल्कि जीवन जीने की प्रेरणा भी प्राप्त करते हैं।
इसलिए हर गणेश चतुर्थी को “विघ्नहर्ता गणेश” का पूजन और कथा-पाठ करना परम आवश्यक माना गया है।
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