Tuesday, November 12, 2024
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बाप-दादा का साथ नहीं…’छठ पूजा की याद में पंडित का दर्द छलका

बॉलीवुड की हिट सीरीज ‘भूल भुलैया 3’ के बड़े पंडित का दिल छठ पूजा के मौके पर अपने बाप-दादा की यादों में डूब गया। जब उनसे छठ पर्व के अनुभवों के बारे में पूछा गया, तो उनकी आंखें भर आईं। पंडित जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “अब घाट ले जाने वाला कोई नहीं रहा। बचपन में मेरे पिता और दादा के साथ घाट पर जाने का अलग ही आनंद था। उनका साथ, उनका स्नेह—सब याद आता है।”

पंडित की भावनात्मक यात्रा

पंडित ने बताया कि बचपन में छठ पूजा का अनुभव उनके लिए खास होता था। घर के बड़े-बुजुर्ग, खासकर बाप-दादा, पूजा के लिए घाट पर ले जाया करते थे। अब वह समय नहीं रहा, और न ही वह स्नेहिल हाथ। “अब घाट पर जाने वाले भी कम हो गए हैं, जो छठ की मिठास और अपनापन था, वो कहीं खो सा गया है,” पंडित ने कहा।

बाप-दादा की यादें

पंडित ने बताया कि छठ पूजा के दौरान उनके बाप-दादा उनकी उंगली पकड़कर घाट ले जाते थे, उस दौरान की खुशबू, माहौल, और वह अपनापन उनके दिल में आज भी बसा है। “अब वह समय लौट कर नहीं आता,” उन्होंने नम आंखों से कहा। इस दर्द ने उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आने वाली पीढ़ियों को वह अद्भुत अनुभव कैसे मिलेगा।

छठ पूजा के प्रति श्रद्धा

पंडित मानते हैं कि छठ पूजा उनके जीवन का अहम हिस्सा है, और वह इस परंपरा को आगे बढ़ाना चाहते हैं। उन्होंने लोगों से अपील की कि छठ पूजा के महत्व को समझें और इसे अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी सिखाएं। “हमारी संस्कृति में पर्व सिर्फ त्योहार नहीं, बल्कि परिवार की धरोहर होते हैं,” पंडित ने कहा।

पारिवारिक रिश्तों की झलक

छठ पूजा का ये त्योहार सिर्फ आस्था का नहीं, बल्कि पूरे परिवार को एक साथ बांधने का पर्व भी है। पंडित जी ने बताया कि इस त्योहार की वजह से पूरे परिवार के साथ घाट पर जाने और व्रत की तैयारियों में जुटने का एक अलग ही उत्साह होता था। “उनके बिना ये त्योहार बस एक रस्म बनकर रह गया है।”

पंडित जी का संदेश नई पीढ़ी के लिए

पंडित जी का मानना है कि नई पीढ़ी को भी इन परंपराओं को समझना और निभाना चाहिए। उन्होंने कहा, “छठ पूजा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और बड़ों के प्रति सम्मान को व्यक्त करने का जरिया है। हमें इन रिश्तों और परंपराओं को जीवित रखना होगा, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी हमारे अनुभवों को महसूस कर सकें।”

छठ की महिमा और पारिवारिक समर्पण

पंडित जी के लिए यह पर्व सिर्फ एक त्योहार नहीं बल्कि अपने बड़ों के साथ बिताए उन लम्हों की स्मृति है जो कभी लौट कर नहीं आएंगे। उन्होंने भावुकता के साथ कहा, “छठ पूजा की हर तैयारी में उनके साथ बिताए पल महसूस होते हैं। घाट पर वो अपने पिता का हाथ थामकर चलना, वो मिठाई बांटना—सब अब यादों में रह गया है।”

छठ पूजा का महत्व और यादों का जिंदा रहना छठ पूजा का महत्व सिर्फ धार्मिक कर्मकांड तक सीमित नहीं है; इसमें परिवार और रिश्तों की अहमियत भी छुपी होती है। उन्होंने कहा कि अब जो जिम्मेदारियां उन्होंने अपने कंधों पर ली हैं, वो पहले उनके बाप-दादा संभालते थे। लेकिन अब वे अकेले इस परंपरा को निभाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इन यादों को समझ सकें।

छठ पूजा का सार और एक नई सीख उन्होंने अंत में कहा कि हर त्योहार केवल परंपरा नहीं, बल्कि रिश्तों की गहराई और उनकी यादों को संजोने का जरिया है। “बाप-दादा का साथ नहीं, लेकिन उनकी दी हुई शिक्षा और सिखाई गई परंपराएं हमेशा मेरे साथ रहेंगी।”

फिल्म और असल ज़िंदगी का संगम

फिल्म ‘भूल भुलैया 3’ में उनकी भूमिका और वास्तविक जीवन में उनका छठ पूजा के प्रति यह लगाव दर्शकों को यह बताता है कि उनके लिए परंपराओं का क्या महत्व है। उन्होंने उम्मीद जताई कि उनकी पीड़ा दर्शकों के दिल तक पहुंचेगी और लोग इस भावना को समझेंगे।

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