दुनिया में जब भी कोई अजीबोगरीब घटना होती है, वह सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैल जाती है। हाल ही में अमेरिका के साउथ डकोटा और कोलोराडो से ऐसी तस्वीरें और वीडियो सामने आए हैं, जिनमें जंगली खरगोशों (Rabbits) के सिर और चेहरे पर सींग जैसी ग्रोथ और तंतु (tentacles) दिखाई दे रहे हैं। इन विचित्र खरगोशों को लोग मजाक में “Frankenstein Rabbits” यानी फ्रेंकस्टीन के खरगोश कहने लगे हैं।
लेकिन असलियत इससे कहीं ज्यादा गंभीर है। इन ग्रोथ के पीछे है एक रहस्यमयी वायरस—शॉप पेपिलोमा वायरस (Shope Papilloma Virus – SPV), जो वास्तव में ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (HPV) का करीबी रिश्तेदार है।
इस आर्टिकल में हम विस्तार से समझेंगे:
- शॉप पेपिलोमा वायरस क्या है?
- खरगोशों में ये ग्रोथ कैसी दिखती है?
- क्या यह वायरस इंसानों या पालतू जानवरों में फैल सकता है?
- इसका इतिहास क्या है और पहली बार इसे किसने खोजा?
- वैज्ञानिक इसके बारे में क्या कहते हैं?
- और अंत में, इस रहस्यमयी बीमारी से जुड़ी सोशल मीडिया चर्चाएँ।
🧬 शॉप पेपिलोमा वायरस (SPV) क्या है?
शॉप पेपिलोमा वायरस, एक प्रकार का पेपिलोमा वायरस है जो खासतौर पर खरगोशों को प्रभावित करता है।
- यह वायरस खरगोशों की स्किन सेल्स की असामान्य वृद्धि कर देता है।
- नतीजतन, खरगोश के सिर, चेहरे, और मुंह के आसपास मस्से जैसे ट्यूमर (warts) बनने लगते हैं।
- ये ग्रोथ धीरे-धीरे सींग (horns) या टेंटेकल्स (tentacles) जैसी दिखने लगती हैं।
यानी ये खरगोश देखने में डरावने लगते हैं, मानो किसी हॉरर फिल्म से निकलकर आ गए हों।
📜 शॉप पेपिलोमा वायरस की खोज
इस वायरस की खोज 1930s में हुई थी।
- अमेरिकी शोधकर्ता रिचर्ड शोप (Richard Shope) ने इसे पहली बार पहचाना।
- उन्होंने देखा कि अमेरिका के जंगलों में घूमने वाले कॉटनटेल खरगोशों (cottontail rabbits) के सिर और चेहरे पर अजीबोगरीब ग्रोथ हो रही थी।
- बाद में पता चला कि ये ग्रोथ कोई जादू-टोना नहीं, बल्कि एक वायरल इंफेक्शन की वजह से है।
इसीलिए इस वायरस का नाम रखा गया—Shope Papilloma Virus।
🐇 प्रभावित खरगोशों का लुक: क्यों कहते हैं “Frankenstein Rabbits”?
SPV से संक्रमित खरगोशों के:
- चेहरे पर कठोर ट्यूमर उग आते हैं।
- ये ट्यूमर सींग या टेंटेकल जैसे बाहर की ओर निकलते हैं।
- कई बार यह ग्रोथ इतनी बड़ी हो जाती है कि खरगोश का खाना-पीना मुश्किल हो जाता है।
- खरगोश का वजन कम होने लगता है और वह धीरे-धीरे कमजोर होकर मर भी सकता है।
यानी, यह बीमारी न केवल डरावनी लगती है, बल्कि खरगोशों की जानलेवा भी है।
⚠️ इंसानों और पालतू जानवरों के लिए खतरा?
लोगों के मन में सबसे बड़ा सवाल यही है कि—
👉 “क्या शॉप पेपिलोमा वायरस इंसानों को भी संक्रमित कर सकता है?”
एक्सपर्ट्स का जवाब:
- नहीं। SPV केवल खरगोशों को प्रभावित करता है।
- यह मनुष्यों, कुत्तों, बिल्लियों या अन्य पालतू जानवरों के लिए संक्रामक नहीं है।
- यानी इंसानों को डरने की जरूरत नहीं है।
लेकिन फिर भी, संक्रमित जंगली खरगोशों को छूने से बचना चाहिए।
🌎 अमेरिका में कहां सबसे ज्यादा असर?
- शॉप पेपिलोमा वायरस अमेरिका के Midwest Region में सबसे ज्यादा पाया गया है।
- खासतौर पर South Dakota, Colorado जैसे राज्यों में इसकी रिपोर्टिंग ज्यादा होती है।
- जंगली खरगोश (Wild Rabbits) तो इससे प्रभावित होते ही हैं, लेकिन कई बार घर में पाले जाने वाले खरगोश भी संक्रमित हो सकते हैं।
🔬 वायरस कैसे फैलता है?
- SPV खरगोशों के त्वचा-से-त्वचा संपर्क से फैलता है।
- कई बार यह कीड़ों (insects) के काटने से भी ट्रांसफर हो सकता है।
- संक्रमित खरगोश के टिश्यू और स्किन पार्टिकल्स में वायरस मौजूद रहता है।
🩺 खरगोशों पर असर
- खरगोश के चेहरे और मुंह पर ग्रोथ इतनी बड़ी हो जाती है कि वह खाना नहीं खा पाता।
- लंबे समय तक भूखा रहने पर खरगोश की मौत भी हो सकती है।
- संक्रमित खरगोश अक्सर कमजोर और बीमार दिखने लगते हैं।
📰 सोशल मीडिया पर चर्चा
- हाल ही में जब SPV से संक्रमित खरगोशों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, तो लोग हैरान रह गए।
- कुछ ने इन्हें “Monster Rabbits” कहा, तो कुछ ने “Frankenstein Rabbits”।
- कई लोगों ने इसे एलियन लाइफ या जेनेटिक म्यूटेशन तक बता दिया।
लेकिन असलियत सिर्फ यही है कि—यह एक वायरस है।
🧑🔬 विज्ञान के लिए महत्व
SPV ने विज्ञान की दुनिया में भी खास योगदान दिया है।
- इस वायरस पर रिसर्च करते हुए वैज्ञानिकों को समझ आया कि वायरस कैसे कैंसर जैसी बीमारियां पैदा कर सकते हैं।
- यानी SPV ने कैंसर रिसर्च में भी बड़ा रोल निभाया है।
🛡️ बचाव के तरीके
- जंगली खरगोशों को छूने से बचें।
- अगर आपके घर में पालतू खरगोश है, तो उसे जंगली खरगोशों से दूर रखें।
- बीमार खरगोश दिखे तो स्थानीय वन्यजीव अधिकारी को सूचना दें।
✅ निष्कर्ष
शॉप पेपिलोमा वायरस (SPV) दिखने में डरावना जरूर है, लेकिन इंसानों के लिए बिल्कुल भी खतरनाक नहीं है। यह सिर्फ खरगोशों को प्रभावित करता है और उनकी जिंदगी पर गंभीर असर डाल सकता है।
जिज्ञासा और डर के बावजूद, हमें याद रखना चाहिए कि यह भी प्रकृति का एक हिस्सा है। वैज्ञानिक इसके जरिए कैंसर जैसी बीमारियों को समझने की कोशिश कर रहे हैं, जो भविष्य में मानव स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी साबित हो सकती है।
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