फिल्म का विषय और विवाद की जड़
‘उदयपुर फाइल्स’ 2022 की काशमकशीहत्या की कुख्यात घटना — जिसमें दर्जी कन्हैया लाल साहू को एक दुकान पर सिर काटकर हत्यारों ने निर्मम ढंग से मार दिया — पर आधारित क्राइम-ड्रामा है। यह कहानी विकر-राज (विजय राज) की भूमिका में दर्शाई गई है, जिसमें भरत एस. श्रीनेत और जयंत सिन्हा निर्देशन करते दिखे। अमित जानी द्वारा निर्मित यह फिल्म 11 जुलाई, 2025 को रिलीज़ होने वाली थी। 4 जुलाई को रिलायंस एंटरटेनमेंट के यूट्यूब चैनल पर ट्रेलर रिलीज़ हुआ, जिसने जल्द ही धार्मिक-सामाजिक विवादों को जन्म दिया।
🛑 2. दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा अचानक रोक — 10 जुलाई, 2025
दिल्ली हाईकोर्ट (मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय व न्यायमूर्ति अनीश दयाल की पीठ) ने कई याचिकाएं स्वीकारते हुए 10 जुलाई को फिल्म पर अंतरिम रोक लगा दी
- याचिकाकर्ताओं में मौलाना अरशद मदानी व जमीयत-उलेमा-ए-हिंद प्रमुख, पत्रकार प्रशांत टंडन, और हत्या के आरोपी मोहम्मद जावेद भी शामिल रहे ।
- अदालत ने केंद्र सरकार से Cinematograph Act, Section 6 के तहत समीक्षा की मांग की, और इसके निर्णय तक रिलीज़ कंट्रोल रखा ।
- HC ने कहा कि जब तक केंद्र ‘revision’ याचिका पर निर्णय न दे, तब तक फिल्म थियेटर्स में नहीं जाए।
🔔 3. विवाद के केंद्र में क्या है?

– याचिकाकर्ता आरोप लगाते हैं कि फिल्म समुदाय विरोधी है, “घृणा फैलानेवाली सामग्री” है और इसके संतुलनहीन दृश्य साम्प्रदायिक तनाव भड़का सकते हैं ।
– अग्ररिपोर्टों में बताया गया कि CBFC ने ट्रेलर के कुछ भाग हटाए थे, पर निर्माताओं ने uncertified क्लिप तुरंत जारी कर दी, जिससे यह हुआ ।
– हत्या के आरोपी मोहम्मद जावेद ने याचिका में दावा किया कि फिल्म उसकी “fair trial” की प्रक्रिया को प्रभावित करेगी ।
⚖️ 4. सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
- 9 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी तात्कालिक रोक का आदेश नहीं दिया — उसने कहा “Let the film be released”, और फिल्म को रिलीज़ करने की स्थिति में कोई रोक नहीं डाली।
- 11 जुलाई को एक और याचिका दाखिल की गई कि संचालित कंवर यात्रा (Kanwar Yatra) के दौरान फिल्म रिलीज से रोक लगाई जाए — SC ने इसे खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि यह मामला पहले से HC की निगरानी में है ।
- 14 जुलाई को निर्माताओं ने सुप्रीम कोर्ट में सीधे याचिका दायर की, जिसमें दिल्ली HC के आदेश को रद करने की गुहार की गई। बेंच (न्यायमूर्ति सूर्यकांत व जॉयमल्या बागची) ने याचिका को 1‑2 दिनों में सूचीबद्ध करने का वादा किया ।
🏛️ 5. हाईकोर्ट बनाम सुप्रीम कोर्ट — परस्पर गुटबंदी

अदालत | निर्णय और तर्क |
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दिल्ली हाईकोर्ट | ट्रेलर में uncertified हिस्सों के प्रसार को लेकर रोक; केंद्र को पुनरीक्षण प्रक्रिया का उपयोग कर समीक्षा की जिम्मेदारी दी । |
सुप्रीम कोर्ट | तुरंत रिलीज़ पर रोक नहीं; याचिकाओं को शर्तों पर सूचीबद्ध करने की अनुमति; न्यायिक हस्तक्षेप को सीमित किया । |
निर्माताओं की आपत्ति है कि CBFC द्वारा प्रमाणन और पहले ही सेंसर कट्स हो चुके हैं, और अचानक रिलीज़ पर हाई कोर्ट का रोक निष्पक्ष प्रक्रिया के खिलाफ है ।
💡 6. इस विवाद का महत्व और असर
- धार्मिक प्रवृत्ति बनाम अभिव्यक्ति स्वतंत्रता: यह मामला सिनेमा में धार्मिक शरीरों के चित्रण और स्वतंत्रता की सीमा पर प्रश्न उठाता है।
- न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता: दोनों ही अदालतों के निर्णय ने नियमित न्याय प्रक्रिया, संवैधानिक अधिकार और कानूनप्रक्रियाओं की सीमा स्पष्ट की।
- सामाजिक स्थिरता चिंताएं: आरोप है कि ये फिल्म 2022 की हिंसा को दुबारा उकसा सकती है, खासकर कारी प्रकरणों के पुनरुद्धार एवं वर्तमान हलचल में ।
🔜 7. अगला क्या है?
- अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका की सुनवाई होगी — 1‑2 दिनों के भीतर सूचीबद्ध और फिर दिल्ली HC के आदेश का पालन करने या उसे anul करने का निर्णय ।
- यदि SC HC आदेश को रद्द करता है, तो फिल्म जैसे ही केंद्र समीक्षा अवधि पूरी हो (7‑10 दिन) रिलीज के लिए जा सकती है।
- यदि केंद्र फिल्म को संशोधित/रद्द का आदेश देता है, तो फिल्म या ट्रेलर फिर से CBFC के सामने जाने होंगे।
🧭 8. दिलचस्प पहलु और निष्कर्ष
- निर्माताओं का कहना है: “दो घंटे पहले ही रोक लग गया, बुकिंग टूटा, थिएटर्स तैयार थे…”— यह क्रमिक रूप से टाइमिंग पर गंभीर सवाल उठाते हैं ।
- न्यायमूर्ति उपाध्याय की अदालत ने साफ कहा कि याचिकाकर्ताओं को सबसे पहले कानूनी उपाय अपनाना चाहिए, न कि न्यायालय को संबंधित प्रक्रियाओं से अलग कर देना चाहिए ।
- केंद्रीय सरकार के निर्णय से तय होगा कि क्या फिल्म सामाजिक-संवेदनशील मानदंडों के अनुरूप है या फिर आगे कुछ कटौती/रोक आवश्यक है।
✍️ अंत
संक्षेप में, ‘उदयपुर फाइल्स’ न सिर्फ एक क्राइम ड्रामा है, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था, सेंसरशिप प्रक्रिया, और धार्मिक-सामाजिक संतुलन की परख भी है। अगले कुछ दिनों में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई इस मामले का रुख तय करेगी:
- क्या भारत में कलात्मक स्वतंत्रता को धार्मिक भावनाओं से ऊपर रखा जाएगा?
- क्या CBFC निर्णय को अदालत आदर्श मानती रहेगी, या उसे और बढ़िया ढंग से संचालित करेगी?
- इस फिल्म की रिलीज़ — जो दिल्ली HC की दो-दिवसीय निर्देश अवधि में थी — क्या वह प्रभावित होगी?
जहां एक ओर निर्माताओं की कहनी है “बीसे जैसा लिखा, सब काट कर भी साबित हुआ कंटेंट संवेदनशील है”, वहीं दूसरी ओर याचिकाकर्ता कहते हैं “यह फिल्म सिर्फ घटनाओं की रिपोर्टिंग नहीं, बल्कि वर्गीकरण और नफरत फैलाती दिखती है”। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की 1‑2 दिन भीतर की listing काफी बड़ी उम्मीद लेकर आ रही है।
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इस घटना ने साफ कर दिया है कि जब सिनेमा वास्तविक जीवन व संवेदनशील घटनाओं पर आधारित हो, तो रचनात्मक स्वतंत्रता, संवैधानिक अधिकार, और सार्वजनिक भावना तीनों की संतुलन बारीकी से अदालतों की निगरानी में रहेगा।