Site icon Desh say Deshi

सुप्रीम कोर्ट बोला: खुशियां भी, स्वच्छ हवा भी

सुप्रीम कोर्ट का संतुलित फैसला: दीवाली पर दिल्ली-एनसीआर में केवल ‘ग्रीन पटाखे’ ही जलेंगे


दीवाली से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट ने आज पटाखों को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में 18 से 21 अक्टूबर तक ग्रीन पटाखों (Green Crackers) के सीमित इस्तेमाल की अनुमति दी है। लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि दिल्ली-एनसीआर के बाहर से तस्करी कर लाए गए पटाखों पर पूरी तरह प्रतिबंध रहेगा।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई (CJI BR Gavai) ने कहा कि बाहरी इलाकों से तस्करी होकर आने वाले पारंपरिक पटाखे ग्रीन पटाखों की तुलना में कहीं ज्यादा नुकसानदायक हैं। उन्होंने कहा,

“हमें एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा — पर्यावरण से समझौता किए बिना लोगों की परंपरा और खुशी का भी ध्यान रखना है।”


🌱 क्या हैं ‘ग्रीन पटाखे’?

‘ग्रीन पटाखे’ वे पटाखे हैं जिनमें सामान्य पटाखों की तुलना में कच्चे माल और रसायनों का उपयोग कम किया जाता है। इनमें ऐसे पदार्थ मिलाए जाते हैं जो धूल और धुएं को कम करते हैं।
👉 इनसे 30-35% कम प्रदूषण होता है।
👉 इनमें सोडियम नाइट्रेट, लेड, आर्सेनिक और बैरियम जैसे हानिकारक रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता।
👉 ये पटाखे CSIR (Council of Scientific and Industrial Research) द्वारा विकसित तकनीक से बनाए जाते हैं।

इससे पहले 2018 में भी सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन पटाखों के उपयोग को मंजूरी दी थी, लेकिन उसके क्रियान्वयन में कई चुनौतियां सामने आई थीं।


🚫 बाहरी पटाखों पर सख्त निगरानी

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि दिल्ली-एनसीआर में कोई भी पटाखा बाहर से लाया गया नहीं होना चाहिए।
इस पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण निकायों (SPCBs) को विशेष निगरानी करने का आदेश दिया गया है।

इन संस्थानों को आदेश दिया गया है कि वे:


💨 दिल्ली में प्रदूषण का बढ़ता संकट

दिल्ली-एनसीआर में हर साल दिवाली के आसपास वायु गुणवत्ता बेहद खराब हो जाती है।
धूल, पराली जलाने और पटाखों के धुएं के कारण शहर ‘गैस चैंबर’ बन जाता है।
इस बार भी दिवाली से पहले AQI कई इलाकों में 200-250 के बीच पहुंच चुका है, जो ‘मध्यम से खराब’ श्रेणी में आता है।

CPCB के अनुसार, पटाखों का धुआं PM 2.5 और PM 10 कणों की मात्रा को कई गुना बढ़ा देता है। यही कण श्वसन तंत्र, फेफड़ों और हृदय के लिए सबसे हानिकारक होते हैं।


🏙️ अदालत ने कहा: “संतुलन जरूरी है”

मुख्य न्यायाधीश गवई ने अपने बयान में कहा कि न्यायालय लोगों की धार्मिक भावनाओं और त्योहार की परंपरा को समझता है, लेकिन पर्यावरण की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है।

“हम पटाखों को पूरी तरह प्रतिबंधित नहीं कर रहे, बल्कि जिम्मेदारी के साथ उनका उपयोग सुनिश्चित कर रहे हैं,” — कोर्ट ने कहा।

यह फैसला “अस्थायी उपाय” के तौर पर दिया गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि आने वाले महीनों में इस विषय पर लंबी अवधि की नीति (Long-term Policy) तैयार करने पर विचार किया जाएगा।


🔍 क्या होगा उल्लंघन करने पर?

यदि कोई व्यक्ति, दुकान या कंपनी बाहरी या पारंपरिक पटाखे बेचते या जलाते पकड़ी जाती है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
दिल्ली पुलिस और नगर निगम को आदेश दिया गया है कि:

साथ ही, ऑनलाइन बिक्री (e-commerce platforms) के जरिए पटाखों की बिक्री पर भी निगरानी रखी जाएगी।


🎆 क्या बदल जाएगा इस दिवाली?

इस बार की दिवाली में दिल्लीवासियों को शायद पटाखों की आवाज़ थोड़ी कम सुनाई दे, लेकिन साफ हवा का अनुभव ज़रूर मिलेगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर लोग ग्रीन पटाखों का ही इस्तेमाल करें, तो:


🌍 विशेषज्ञों की राय

पर्यावरण विशेषज्ञ सुनीता नारायण ने कहा,

“सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला त्योहार और पर्यावरण के बीच संतुलन की दिशा में सही कदम है। असली बदलाव तभी आएगा जब जनता खुद जिम्मेदारी दिखाए।”

वहीं, ग्रीन पटाखे बनाने वाले उद्योगों ने कहा कि इस आदेश से ‘स्वच्छ पटाखा उद्योग’ को बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय रोजगार में वृद्धि होगी।


🙏 अदालत का संदेश: “उत्सव मनाइए, लेकिन जिम्मेदारी से”

सुप्रीम कोर्ट ने अंत में कहा,

“दीवाली रोशनी और खुशी का पर्व है, इसे प्रदूषण और विनाश का प्रतीक न बनने दें।”

न्यायालय ने नागरिकों से अपील की कि वे:


🪔 निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल पर्यावरण की रक्षा के लिए, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के स्वास्थ्य के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम है।
अगर दिल्ली-एनसीआर के लोग इस दिशा में सहयोग करें, तो शायद आने वाले वर्षों में दिवाली रोशनी और स्वच्छ हवा का त्योहार बन सके।

यह भी पढ़ें– धनतेरस 2025: मुहूर्त और महत्व

Exit mobile version