Tuesday, October 14, 2025
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EC ने खोला पत्ता, 15 दिन की विंडो पर उठाया पर्दा

बिहार की सियासत और मतदाता सूची पर विवाद

भारत का लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इसमें चुनाव उसकी आत्मा। लेकिन जब चुनावी प्रक्रिया पर ही सवाल उठने लगें, तो यह लोकतंत्र की नींव को हिला देता है।
बिहार में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज है। सियासी दल जनता को लुभाने के लिए मैदान में हैं। वहीं, विपक्ष ने मतदाता सूची में गड़बड़ी और चुनावी धांधली के आरोपों से माहौल गर्मा दिया है।

राहुल गांधी और विपक्षी नेताओं ने खुलेआम चुनाव आयोग पर “वोट चोरी” का आरोप लगाया। इस पर रविवार को मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और विस्तार से आयोग का पक्ष रखा।


🗣️ मुख्य चुनाव आयुक्त का बयान : “15 दिन की विंडो को गंवाइए मत”

प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त का पूरा जोर 15 दिन की विंडो पर रहा। उन्होंने कहा –

👉 “हमने बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) की प्रक्रिया शुरू की है। अभी भी 15 दिन का समय है। सभी राजनीतिक दल और आम मतदाता अपनी शिकायतें और आपत्तियां दर्ज कर सकते हैं। यह मौका गंवाना नहीं चाहिए।”

उनका साफ कहना था कि अगर किसी को मतदाता सूची में गड़बड़ी लगती है, तो वह इसे सुधारने में मदद करे।


बारिश के मौसम में SIR क्यों?

चुनाव आयुक्त ने बताया कि सवाल उठाया जा रहा है कि बारिश के मौसम में स्पेशल रिवीजन क्यों? इस पर उन्होंने कहा –

👉 “2003 में भी बिहार में 15 जुलाई से 15 अगस्त के बीच ऐसा ही SIR हुआ था और यह सफल रहा।
👉 इस बार भी 1 महीने से कम समय में 7 करोड़ से ज्यादा लोगों के फॉर्म हमें मिले।
👉 मतदाता सूची में सुधार चुनाव से पहले होना चाहिए, न कि चुनाव के बाद।

संविधान के अनुसार 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर को नए वोटर जोड़े जा सकते हैं। अप्रैल बहुत दूर था और अक्टूबर चुनाव के बेहद करीब था। ऐसे में जुलाई ही सही समय था।”


⚰️ 22 लाख मृत मतदाता कैसे सामने आए?

सबसे बड़ा सवाल उठा कि अचानक 22 लाख मृत मतदाताओं का नाम लिस्ट से कैसे हटा?

इस पर चुनाव आयुक्त ने कहा –

👉 “हर साल वोटर लिस्ट अपडेट होती है, लेकिन तब घर-घर फॉर्म नहीं भेजे जाते।
👉 इस वजह से जिनकी मृत्यु हो चुकी होती है, उनकी जानकारी BLO तक नहीं पहुँचती।
👉 SIR प्रक्रिया में घर-घर फॉर्म गए और सही आंकड़े सामने आए।
👉 इसी कारण 22 लाख मृत लोगों का नाम अब हटाया गया है।”


🧾 राहुल गांधी से हलफनामा मांगने पर बवाल

प्रेस कॉन्फ्रेंस का सबसे बड़ा हाइलाइट रहा चुनाव आयुक्त का राहुल गांधी पर सीधा वार।

उन्होंने कहा –

👉 “राहुल गांधी ने जो आरोप लगाए हैं, उन पर उन्हें सात दिन के भीतर हलफनामा देना होगा या देश से माफी माँगनी होगी।
👉 अगर ऐसा नहीं हुआ, तो उनके आरोपों को निराधार माना जाएगा।”

उन्होंने साफ किया कि चुनावी शिकायत दर्ज करने के लिए 45 दिन का समय होता है। लेकिन शिकायत उसी निर्वाचन क्षेत्र का मतदाता कर सकता है और उसे फॉर्म 6 भरना होता है।
अगर यह समय सीमा निकल जाए, तो शपथ पत्र देना पड़ता है। वरना आरोप सिर्फ एक राजनीतिक बयान माना जाएगा।


👥 1.6 लाख BLO और मसौदा सूची

ज्ञानेश कुमार ने बताया कि –

👉 “बिहार में 1.6 लाख बूथ लेवल एजेंट (BLA) ने मसौदा सूची तैयार की।
👉 हर बूथ पर यह सूची सभी राजनीतिक दलों के एजेंटों ने सत्यापित की।
👉 मतदाताओं ने अब तक 28,370 आपत्तियां और दावे दर्ज किए हैं।
👉 जब इतने लोग मिलकर सूची बना रहे हैं, तो वोट चोरी कैसे संभव है?”


🔍 विपक्ष के आरोप बनाम आयोग का बचाव

  • विपक्ष का आरोप –
    1. मतदाता सूची में भारी गड़बड़ी।
    2. मृत लोगों के नाम पर वोटिंग का खतरा।
    3. “वोट चोरी” और धांधली की आशंका।
  • आयोग का जवाब –
    1. यह सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी।
    2. सुधार के लिए 15 दिन की विंडो अभी भी है।
    3. सभी पार्टियों से सहयोग की अपील।
    4. मृत मतदाताओं का नाम पहले से ही काटा जा चुका है।

📊 आंकड़ों की नजर से

  • कुल मतदाता : लगभग 7.5 करोड़
  • अब तक प्राप्त फॉर्म : 7 करोड़+
  • मृत मतदाता हटाए गए : 22 लाख
  • दावे व आपत्तियां : 28,370
  • BLO की संख्या : 1.6 लाख

📰 राजनीतिक माहौल और भविष्य की दिशा

इस पूरे विवाद ने बिहार की राजनीति को और गरमा दिया है।
जहां विपक्ष मतदाता सूची को लेकर चुनाव आयोग पर सवाल उठा रहा है, वहीं आयोग का दावा है कि प्रक्रिया पारदर्शी है और इसमें जनता की पूरी भागीदारी है।

आने वाले 15 दिनों में यह देखना अहम होगा कि क्या विपक्ष आयोग के साथ मिलकर शिकायत दर्ज करता है या फिर राजनीतिक बयानबाजी तक ही सीमित रहता है।


निष्कर्ष

लोकतंत्र की सफलता इस पर निर्भर करती है कि जनता को उस पर भरोसा हो। अगर मतदाता सूची में गड़बड़ी होगी, तो भरोसा डगमगाएगा।
मुख्य चुनाव आयुक्त ने 15 दिन की विंडो पर जोर देकर यह स्पष्ट कर दिया है कि सुधार का मौका सबके पास है।
अब यह राजनीतिक दलों और मतदाताओं पर है कि वे इस मौके का कितना फायदा उठाते हैं।

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