Monday, October 13, 2025
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Gen-Z ने कर दिखाया नेपाल में जल्द शुरू होगी चुनावी जंग

संघर्ष से सियासत तक — नेपाल फिर से लोकतांत्रिक पथ पर लौट रहा है”

काठमांडू।
नेपाल ने एक उथल-पुथल भरे दौर के बाद आखिरकार स्थिरता की ओर कदम बढ़ा दिया है।
Gen-Z आंदोलन की लहर, जिसने देश को हिलाकर रख दिया था, अब धीरे-धीरे थमती दिख रही है।
हिंसक प्रदर्शनों, प्रशासनिक अस्थिरता और राजनीतिक टकराव के महीनों बाद अब नेपाल का लोकतंत्र फिर से पटरी पर लौट रहा है।

नेपाल के चुनाव आयोग ने आधिकारिक रूप से प्रतिनिधि सभा के चुनाव की तारीख 5 मार्च, 2026 घोषित कर दी है।
इसके साथ ही देश में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है।
अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की के नेतृत्व में बनी सरकार अब इस प्रक्रिया को निष्पक्ष और शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न कराने के लिए तैयार है।


Gen-Z आंदोलन: युवाओं के जोश ने बदला नेपाल का राजनीतिक नक्शा

पिछले कुछ महीनों में नेपाल में जो कुछ हुआ, उसने देश के राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया।
“Gen-Z आंदोलन” — यह सिर्फ एक विरोध नहीं था, बल्कि यह एक पीढ़ी का स्वर था जो बदलाव चाहती थी।

यह आंदोलन राजधानी काठमांडू से शुरू होकर देश के कई हिस्सों में फैल गया।
युवाओं ने बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक परिवारवाद के खिलाफ सड़कों पर उतरकर आवाज़ बुलंद की।

लेकिन जब यह विरोध हिंसक हुआ, तो स्थिति बिगड़ गई।
संपत्ति जलाने, झड़पों और इंटरनेट ब्लॉकेज की घटनाओं ने माहौल को अस्थिर कर दिया।
हालांकि, अंततः इसी आंदोलन ने पुरानी व्यवस्था को हिलाकर रख दिया —
और पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया।


👩‍⚖️ सुशीला कार्की: नेपाल की पहली महिला अंतरिम प्रधानमंत्री

Gen-Z आंदोलन के बाद बने राजनीतिक शून्य को भरने के लिए
सर्वसम्मति से सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया।

73 वर्षीय कार्की नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रह चुकी हैं,
और उन्हें ईमानदारी, सख्त प्रशासनिक रवैये और पारदर्शिता के लिए जाना जाता है।

उन्होंने 12 सितंबर 2025 को अंतरिम सरकार की बागडोर संभाली।
उनकी प्राथमिकता स्पष्ट थी —

“हमारा लक्ष्य सत्ता में बने रहना नहीं, बल्कि जनता को मतदान का अधिकार लौटाना है।”

उनकी सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि देश में जल्द से जल्द मुक्त और निष्पक्ष चुनाव आयोजित हों।


🗳️ चुनाव आयोग की घोषणा: लोकतंत्र की प्रक्रिया फिर शुरू

नेपाल के चुनाव आयोग (Election Commission of Nepal) ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव कार्यक्रम की औपचारिक घोषणा की।
आयोग के अनुसार:

  • नए राजनीतिक दलों का पंजीकरण: 15 नवंबर 2025 तक
  • राजनीतिक दलों का नामांकन: 16 से 26 नवंबर 2025
  • उम्मीदवारों की सूची दाखिल करने की तिथि: 2 और 3 जनवरी 2026
  • चुनाव प्रचार अभियान: 15 फरवरी से 2 मार्च 2026
  • मतदान की तिथि: 5 मार्च 2026 (सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक)
  • मतगणना: मतदान के दिन शाम से ही शुरू होगी

चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि सभी चरणों में कठोर सुरक्षा व्यवस्था और स्वतंत्र निगरानी तंत्र सुनिश्चित किया जाएगा।


🌍 राजनीतिक दलों में हलचल: सत्ता की नई जंग शुरू

घोषणा के साथ ही नेपाल की राजनीति में नई हलचल मच गई है।
पुराने दल अपनी खोई हुई साख वापस पाने में जुटे हैं,
जबकि नए उभरते संगठन युवाओं की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने का दावा कर रहे हैं।

नेपाली कांग्रेस (NC) और सीपीएन-यूएमएल (CPN-UML) जैसे पारंपरिक दल
अब अपनी रणनीतियों को पुनर्गठित कर रहे हैं।

दूसरी ओर, “जन-जागरण पार्टी” और “न्यू नेपाल मूवमेंट” जैसे नए संगठन
Gen-Z आंदोलन की भावना को राजनीतिक मंच पर बदलने की तैयारी कर रहे हैं।


🧭 कैसे बना Gen-Z आंदोलन एक ऐतिहासिक मोड़

Gen-Z आंदोलन की शुरुआत सोशल मीडिया से हुई थी।
युवा कार्यकर्ताओं ने हैशटैग #NayaNepal #GenZForChange के ज़रिए
सरकार के खिलाफ अभियान शुरू किया।

धीरे-धीरे आंदोलन सड़कों पर पहुंचा।
छात्रों, बेरोजगार युवाओं और आम नागरिकों ने पारदर्शी शासन, रोजगार और शिक्षा सुधार की मांग की।

राजनीतिक अस्थिरता, मंहगाई और सरकार के भ्रष्टाचार के आरोपों ने इस आंदोलन को भड़काया।
जब पुलिस कार्रवाई हुई, तो आंदोलन हिंसक हो गया — और यही वह बिंदु था
जहां से सरकार की साख गिरने लगी।


💬 जनता की राय: “हमें उम्मीद है कि यह चुनाव सच्चा बदलाव लाएगा”

काठमांडू के 24 वर्षीय छात्र अरुण श्रेष्ठ कहते हैं:

“हमने बहुत देखा — पुराने नेता केवल वादे करते रहे।
अब हम चाहते हैं कि हमारी पीढ़ी के लोग आगे आएं और देश को नया दिशा दें।”

वहीं, एक स्थानीय व्यापारी सुधा भंडारी का कहना है:

“सुशीला कार्की में हमें विश्वास है।
उन्होंने कानून की रक्षा की है, अब उन्हें लोकतंत्र की रक्षा करनी है।”


📉 नेपाल की अर्थव्यवस्था पर आंदोलन का असर

Gen-Z आंदोलन के दौरान नेपाल की अर्थव्यवस्था को भारी झटका लगा।
पर्यटन उद्योग — जो देश की GDP का बड़ा हिस्सा है — लगभग ठप पड़ गया।
सीमा व्यापार, बैंकिंग और निर्माण क्षेत्र में भी भारी नुकसान हुआ।

नेपाल के वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार,
सितंबर 2025 में देश की आर्थिक विकास दर 3.1% तक गिर गई थी।

लेकिन अब स्थिर सरकार के गठन और चुनाव की तारीख तय होने से
निवेशकों का भरोसा धीरे-धीरे लौट रहा है।


🏛️ सुशीला कार्की की चुनौती: ‘स्थिरता बनाना और लोकतंत्र को पुनर्जीवित करना’

अंतरिम प्रधानमंत्री कार्की के सामने कई चुनौतियाँ हैं:

  1. सुरक्षा: हिंसक झड़पों के बाद शांति बहाल करना।
  2. विश्वास बहाली: जनता और संस्थाओं के बीच संवाद स्थापित करना।
  3. स्वतंत्र चुनाव: यह सुनिश्चित करना कि किसी भी राजनीतिक दल को अनुचित लाभ न मिले।
  4. अर्थव्यवस्था: पर्यटन और रोजगार को पुनर्जीवित करना।

उन्होंने कहा था —

“नेपाल ने बहुत कुछ खोया है, लेकिन अब यह पुनर्जागरण का समय है।
यह चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि सोच के परिवर्तन का प्रतीक होगा।”


📅 क्या कहता है नेपाल का इतिहास?

नेपाल ने 2008 में राजशाही से लोकतंत्र की ओर कदम बढ़ाया था।
लेकिन तब से अब तक देश में 11 सरकारें बदल चुकी हैं

हर सरकार ने सुधारों का वादा किया, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता
और गठबंधन की राजनीति ने देश की प्रगति को रोक दिया।

Gen-Z आंदोलन पहली बार ऐसा क्षण लेकर आया जब
जनता ने सीधे तौर पर यह संदेश दिया —
“हम अब बदलाव चाहते हैं, समझौता नहीं।”


🌐 भारत और अंतरराष्ट्रीय जगत की नज़र

नेपाल के इस राजनीतिक संक्रमण पर भारत समेत पड़ोसी देशों की नज़र बनी हुई है।
भारत ने आधिकारिक रूप से कहा है कि

“नेपाल का लोकतंत्र उसका आंतरिक मामला है,
लेकिन भारत हमेशा स्थिरता और समावेशी विकास का समर्थन करेगा।”

चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने भी
शांतिपूर्ण चुनाव प्रक्रिया का स्वागत किया है।


🔮 अगले छह महीने: नेपाल के भविष्य की दिशा

अब पूरा ध्यान मार्च 2026 के चुनाव पर है।
युवा मतदाता इस बार “किंगमेकर” की भूमिका में होंगे —
जो यह तय करेंगे कि नेपाल किस दिशा में जाएगा।

अगर चुनाव शांति और निष्पक्षता से संपन्न होते हैं,
तो यह दक्षिण एशिया के लोकतांत्रिक इतिहास में
नेपाल के लिए एक नई शुरुआत साबित होगी।

यह भी पढ़ें- Bitcoin का तूफान अब ट्रेडर्स की नजर ₹1.16 करोड़ पर


🕊️ निष्कर्ष: “नेपाल ने अंधेरे से निकलकर उम्मीद की रोशनी देखी है”

Gen-Z आंदोलन ने देश को झकझोरा,
लेकिन उसी आंदोलन ने लोकतंत्र को नई ऊर्जा भी दी।

अब जब चुनाव की तारीखें तय हो चुकी हैं,
नेपाल के लोग एक बार फिर वोट की ताकत से अपना भविष्य तय करने को तैयार हैं।

अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की का संदेश संक्षेप में यही है —

“अब निर्णय जनता करेगी — यही लोकतंत्र की असली जीत है।”

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