नोबेल साहित्य पुरस्कार 2025: क्या इस बार पश्चिमी पुरुष लेखक को मिलेगा सम्मान?
स्टॉकहोम से विशेष रिपोर्ट
दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मान — नोबेल पुरस्कार — इस बार किसके नाम जाएगा, यह सवाल पूरी साहित्यिक दुनिया में गूंज रहा है। पिछले वर्ष दक्षिण कोरिया की लेखिका हान कांग के ऐतिहासिक जीत के बाद, इस बार समीक्षकों का मानना है कि पुरस्कार एक पश्चिमी पुरुष लेखक की झोली में जाएगा।
🔹 पिछली जीत और नई उम्मीदें
2024 में जब हान कांग को नोबेल पुरस्कार मिला था, तब वह एशिया की पहली महिला थीं जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ। यह साहित्य जगत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था। लेकिन अब समीक्षक कह रहे हैं कि इस बार पुरुष लेखक की बारी है — क्योंकि नोबेल इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि लगातार दो साल महिलाओं को यह पुरस्कार दिया गया हो।

1901 से अब तक दिए गए 121 साहित्य नोबेल पुरस्कारों में केवल 18 महिलाएँ विजेता रही हैं। यही कारण है कि आलोचकों का अनुमान है कि इस बार स्वीडिश अकादमी का रुख फिर से पश्चिमी पुरुष लेखकों की ओर होगा।
🔹 संभावित नामों में कौन हैं सबसे आगे?
इस बार चर्चा में जिन नामों की सबसे ज्यादा गूंज है, उनमें शामिल हैं:
- ऑस्ट्रेलिया के जेराल्ड मर्ने (Gerald Murnane)
- रोमानिया के मिर्चा कार्तारेस्कु (Mircea Cartarescu)
- हंगरी के पीटर नादास (Peter Nadas)
- स्विट्जरलैंड के क्रिश्चियन क्राख्त (Christian Kracht)
इसके अलावा, भारत के प्रसिद्ध लेखक अमिताव घोष (Amitav Ghosh) का नाम भी अचानक चर्चा में आया है — और घोषणा से दो दिन पहले ही उनकी संभावनाएँ बढ़ गई हैं।
साहित्य समीक्षक लीना काल्मटेग का कहना है —
“स्वीडिश अकादमी भले कहे कि वे लिंग या राष्ट्रीयता के आधार पर निर्णय नहीं लेते, लेकिन अगर आप पिछले विजेताओं की सूची देखें, तो यह पैटर्न साफ दिखता है — एक साल एशिया, फिर यूरोप, एक बार महिला, फिर पुरुष।”
🔹 नोबेल और #MeToo की छाया
2018 में जब स्वीडिश अकादमी #MeToo स्कैंडल में फँसी थी, तबसे उसकी छवि पर गहरा असर पड़ा। इसके बाद अकादमी ने लगातार कई महिलाओं को सम्मानित किया, ताकि यह दिखाया जा सके कि वह लैंगिक समानता के प्रति संवेदनशील है।
लेकिन अब यह चक्र संभवतः फिर से पुरुष लेखकों की ओर मुड़ेगा।
🔹 जेराल्ड मर्ने — ऑस्ट्रेलिया का रहस्यमय शब्द-शिल्पी
साहित्यिक दुनिया में Gerald Murnane एक अलग ही व्यक्तित्व हैं। 1939 में मेलबर्न में जन्मे मर्ने ने कभी ऑस्ट्रेलिया नहीं छोड़ा। वह अपने जीवन के अनुभवों को गहराई से अपनी कहानियों में उतारते हैं।
उनका प्रसिद्ध उपन्यास “The Plains” (1982) ऑस्ट्रेलियाई जमींदारों की संस्कृति पर आधारित है — जिसे The New Yorker ने “एक विचित्र उत्कृष्ट कृति” (bizarre masterpiece) कहा है।
स्वीडन की साहित्य समीक्षक Josefin de Gregorio के अनुसार,
“मर्ने का लेखन इतना गहरा और आत्ममंथन से भरा है कि वह पाठक को एक स्वप्निल अनुभव देता है। अगर उन्हें नोबेल मिलता है तो यह साहित्य के लिए एक सच्चा सम्मान होगा।”
उन्होंने हँसी में यह भी कहा —
“मुझे नहीं पता कि जब स्वीडिश अकादमी उन्हें फोन करेगी, तो क्या वह जवाब देंगे भी या नहीं — शायद उनके पास फोन ही न हो!”
🔹 क्रिश्चियन क्राख्त — आधुनिक उपभोक्तावाद का दार्शनिक लेखक
Christian Kracht, जो जर्मन भाषा में लिखते हैं, आज के दौर के सबसे चर्चित पोस्टमॉडर्निस्ट लेखकों में से एक हैं। वे पॉप संस्कृति, उपभोक्तावाद और मानव अस्तित्व के विरोधाभासों पर व्यंग्यात्मक शैली में लिखते हैं।
स्वीडन के प्रतिष्ठित समाचार पत्र Dagens Nyheter के सांस्कृतिक संपादक Björn Wiman का कहना है —
“इस साल क्राख्त के नाम पर गंभीर चर्चा है। गोथेनबर्ग बुक फेयर में जब उनका सेशन हुआ, तो स्वीडिश अकादमी के कई सदस्य फ्रंट रो में बैठे थे — और यह संकेत आमतौर पर बहुत कुछ कह जाता है।”
उन्होंने याद दिलाया कि 2004 में जब Elfriede Jelinek को नोबेल मिला था, तब भी कुछ ऐसा ही माहौल देखा गया था।
🔹 साहित्यिक विविधता की नई लहर
कुछ आलोचकों का मानना है कि नोबेल समिति अब सिर्फ यूरोप या पश्चिमी दुनिया तक सीमित नहीं रहना चाहती।
लैटिन अमेरिका के कई नाम इस बार सुर्खियों में हैं —
- चिली के राउल ज़ुरिता,
- अर्जेंटीना के सेज़र आइरा,
- मेक्सिको की लेखिकाएँ क्रिस्टीना रिवेरा गार्ज़ा और फर्नांडा मेल्चोर।
स्वीडिश समीक्षक काल्मटेग कहती हैं —
“2010 में पेरू के मारियो वर्गास ल्योसा के बाद अब तक किसी दक्षिण अमेरिकी लेखक को यह सम्मान नहीं मिला। अब शायद वहां की बारी है।”
🔹 महिला लेखिकाओं की संभावनाएँ
हालाँकि समीक्षक पुरुष विजेता की संभावना अधिक बता रहे हैं, फिर भी कुछ महिला लेखिकाओं के नाम भी चर्चा में हैं —
- एंटिगुआ-अमेरिकी लेखिका जमैका किनकैड,
- कनाडा की ऐन कार्सन,
- ऑस्ट्रेलिया की एलेक्सिस राइट।
एलेक्सिस राइट को उनके अबोरिजिनल साहित्य और सामाजिक न्याय पर आधारित लेखन के लिए जाना जाता है।
🔹 नोबेल का रहस्य और प्रतिष्ठा
नोबेल पुरस्कार समिति अपनी प्रक्रियाओं को पूरी तरह गोपनीय रखती है।
किसे नामित किया गया है — यह 50 साल तक सार्वजनिक नहीं किया जाता।
यही कारण है कि हर साल घोषणा से पहले अटकलों का बाज़ार गर्म रहता है।
इस बार भी दुनिया के कोने-कोने से साहित्य प्रेमी, प्रकाशक और पत्रकार यह जानने को उत्सुक हैं कि 2025 का नोबेल साहित्य पुरस्कार किसे मिलेगा।
पुरस्कार की घोषणा गुरुवार, दोपहर 1 बजे (स्टॉकहोम समयानुसार) की जाएगी, और विजेता को 1.2 मिलियन डॉलर (लगभग ₹10 करोड़) की राशि दी जाएगी।
🔹 नोबेल का बदलता चेहरा
पिछले दशक में नोबेल साहित्य पुरस्कारों में एक नया पैटर्न उभरा है —
पहले जहाँ वृद्ध पुरुष लेखक ही सम्मान पाते थे, वहीं अब युवा और सक्रिय आवाज़ों को भी मंच मिल रहा है।
हान कांग इसका ताज़ा उदाहरण हैं, जिन्होंने सिर्फ 53 वर्ष की उम्र में पुरस्कार जीता।
स्वीडन के समीक्षक वाइमैन कहते हैं —
“पाँच साल पहले तक यह सोचना भी असंभव था कि हान कांग जैसी आधुनिक और अंतरराष्ट्रीय लेखिका को नोबेल मिलेगा। अब अकादमी का दृष्टिकोण बदल रहा है — और यह अच्छा संकेत है।”
🔹 निष्कर्ष — परंपरा या परिवर्तन?
तो क्या इस बार नोबेल अकादमी पारंपरिक रास्ते पर लौटेगी, या फिर नई दिशा में आगे बढ़ेगी?
क्या कोई नया नाम उभरेगा, या कोई पुराना दिग्गज दोबारा छाएगा?
साहित्य जगत की नज़रें अब पूरी तरह स्टॉकहोम पर टिकी हैं।
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जो भी हो, यह निश्चित है कि नोबेल साहित्य पुरस्कार 2025 न सिर्फ एक व्यक्ति को, बल्कि पूरी मानवता के लेखन, सोच और कल्पना की शक्ति को सम्मानित करेगा।