Tuesday, December 10, 2024
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मohan भागवत: भारत के संस्कारों की 500 साल पुरानी ताकत

नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने भारत की संस्कृति और परंपराओं की महत्ता पर जोर देते हुए कहा है कि भारत के संस्कारों में 500 साल पुरानी शक्ति है, जो समय के साथ भी अपनी पहचान और ताकत बनाए रखी है। उनका मानना है कि अगर भारतीय समाज अपने मूल संस्कारों को पूरी तरह से समझे और अपनाए, तो देश को कोई भी ताकत पराजित नहीं कर सकती।

संस्कारों का महत्व

मोहन भागवत ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा, “भारत की संस्कृति और संस्कारों की जो नींव पड़ी है, वह 500 साल पुरानी है। इन संस्कारों में एक ऐसी शक्ति है, जो न केवल भारत को, बल्कि पूरी दुनिया को एकता और शांति का संदेश देती है। यह शक्ति समय के साथ और भी मजबूत हुई है और हमें इसे संजोकर रखना है।” उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय समाज में विविधताएं हैं, लेकिन हमारी संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि वे कभी भी खत्म नहीं हो सकतीं।

भागवत का कहना था कि पश्चिमी संस्कृति और अन्य बाहरी प्रभावों के बावजूद भारतीय संस्कारों की शक्ति हमेशा जीवित रहेगी। उन्होंने इसे राष्ट्रीय एकता और समाज की मजबूत नींव से जोड़ते हुए कहा कि हमें अपनी परंपराओं को समझने और उनकी अहमियत को पहचानने की आवश्यकता है।

संस्कृतियों का संरक्षण

उन्होंने संस्कृति के संरक्षण पर भी जोर दिया और कहा, “आज के इस डिजिटल और ग्लोबल युग में हमें अपनी संस्कृति को बचाए रखने की जिम्मेदारी समझनी होगी। इसके लिए हमें बच्चों और युवा पीढ़ी को अपने संस्कारों और परंपराओं से अवगत कराना होगा।” भागवत ने भारतीय धर्म, परंपराओं और संस्कृति के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि ये केवल एक पहचान नहीं, बल्कि राष्ट्र की ताकत का स्रोत हैं।

भागवत ने यह भी कहा कि समाज को शोषण, भेदभाव और असमानता जैसी बुराइयों से बचने के लिए अपने संस्कारों का पालन करना होगा। उनका कहना था कि सही संस्कार बच्चों को न केवल अच्छे नागरिक बनाते हैं, बल्कि उन्हें एक सशक्त समाज का हिस्सा भी बनाते हैं।

भारत की शक्ति और एकता

मोहन भागवत ने यह भी कहा कि भारत की शक्ति न केवल उसकी आर्थिक ताकत में है, बल्कि उसकी संस्कृति और संस्कारों में भी एक अदृश्य शक्ति है। उन्होंने उदाहरण के तौर पर भारतीय इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण क्षणों का जिक्र किया, जिसमें भारतीय समाज ने अपनी सांस्कृतिक ताकत के बल पर कई चुनौतियों का सामना किया और जीत हासिल की।

उनका कहना था, “जब तक हम अपनी संस्कृति और मूल्यों को समझते और अपनाते रहेंगे, कोई भी विदेशी ताकत या आक्रमणकर्ता हमें नुकसान नहीं पहुंचा सकता। यही हमारी असली ताकत है।”

आधुनिकता और परंपरा का संतुलन

मोहन भागवत ने आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता पर भी बल दिया। उनका कहना था कि हमें आधुनिक तकनीक और ज्ञान का उपयोग करना चाहिए, लेकिन साथ ही अपनी जड़ों से भी जुड़े रहना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय संस्कृति का यही असली उद्देश्य है – समृद्धि, एकता और शांति के लिए दुनिया में एक नई दिशा देना।

समाज के लिए प्रेरणा

मोहन भागवत का कहना था कि भारतीय संस्कृति और उसके संस्कारों की ताकत ही आज हमें वैश्विक संकटों से उबरने और एक मजबूत राष्ट्र के रूप में उभरने में मदद कर रही है। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ें और उसे समझें, क्योंकि यह विरासत ही उन्हें जीवन की सही दिशा दिखाने का काम करती है।

इसके अलावा, भागवत ने यह भी बताया कि भारतीय संस्कारों का पालन करते हुए हमें अपने समाज को और सशक्त बनाना होगा। यह समय की आवश्यकता है कि हम अपने पारंपरिक मूल्यों को समझें और उन्हें आधुनिक जीवन में लागू करें।

भविष्य में एकजुट राष्ट्र की आवश्यकता

भागवत ने भारतीय समाज की एकता और अखंडता की ओर भी संकेत किया। उन्होंने कहा कि अगर हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को समझते हुए और एकजुट होकर काम करते हैं, तो आने वाले समय में भारत को कोई भी बाहरी या आंतरिक चुनौती नहीं हरा सकती। उनका यह विश्वास है कि भारत की प्राचीन शक्ति ही उसे दुनिया में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाएगी।

निष्कर्ष

मोहान भागवत ने अपने संबोधन में भारत के संस्कृति और संस्कारों की 500 साल पुरानी ताकत को पहचानते हुए, समाज से अपील की कि वे इन मूल्यों को संजोए रखें और आने वाली पीढ़ी को भी इन्हीं संस्कारों से परिचित कराएं। उनके अनुसार, यही वह ताकत है जो भारत को अपनी चुनौतियों का सामना करने में मदद करेगी और उसे एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र बनाए रखेगी।

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