क्रिकेट की दुनिया में कुछ नाम ऐसे होते हैं जो समय के साथ किंवदंती बन जाते हैं। ऐसे ही दो नाम हैं – जेम्स एंडरसन और सचिन तेंदुलकर। भले ही ये दोनों दिग्गज अब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले चुके हैं, लेकिन इनका प्रभाव आज भी वैसा ही बना हुआ है जैसा इनके स्वर्णिम दौर में हुआ करता था। अब एक और बड़ा सम्मान इन दोनों को मिला है – भारत और इंग्लैंड के बीच खेली जाने वाली टेस्ट सीरीज को अब एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी के नाम से जाना जाएगा।
भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज: रोमांच अपने चरम पर
2025 की गर्मियों में खेली जा रही 5 मैचों की टेस्ट सीरीज अब अपने निर्णायक मोड़ पर आ चुकी है। तीन मुकाबलों के बाद इंग्लैंड 2-1 से आगे है और अब दोनों टीमें 23 जुलाई से मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफर्ड मैदान पर भिड़ने को तैयार हैं। भारत के लिए यह मुकाबला ‘करो या मरो’ जैसा है, जहां जीत ही एकमात्र विकल्प है अगर उसे सीरीज में बराबरी करनी है।
ट्रॉफी का नामकरण: एक भावुक मोड़
हाल ही में इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ECB) ने ऐलान किया कि अब भारत-इंग्लैंड के बीच टेस्ट सीरीज को पटौदी ट्रॉफी की जगह एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी के नाम से जाना जाएगा। यह फैसला सिर्फ एक नाम बदलने का नहीं, बल्कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में क्रिकेट की विरासत सौंपने का प्रतीक है।
जेम्स एंडरसन, जिन्होंने 2024 में संन्यास लिया और टेस्ट क्रिकेट में सबसे अधिक विकेट लेने वाले तेज गेंदबाज बने, इस निर्णय से भावुक हो उठे। उन्होंने स्काय स्पोर्ट्स से बातचीत में कहा:
“ट्रॉफी पर अपना नाम देखना बड़ी बात है, लेकिन जब उसके साथ सचिन तेंदुलकर जैसा नाम जुड़ा हो, तो वह सम्मान और भी बड़ा हो जाता है। मैंने अपने करियर में उनसे बहुत कुछ सीखा है। उनके साथ ट्रॉफी शेयर करना गर्व की बात है।”
सचिन तेंदुलकर: जिनका नाम ही क्रिकेट की पहचान है

भारत के क्रिकेट प्रेमियों के दिलों की धड़कन, और विश्व क्रिकेट के ‘भगवान’ कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर ने अपने 24 साल लंबे करियर में जो मुकाम हासिल किए, वे अमर हैं। 200 टेस्ट मैच, 51 शतक और 15,921 रन—ये आँकड़े ही बताते हैं कि क्यों इस ट्रॉफी में उनका नाम शामिल करना एक स्वाभाविक निर्णय था।
पटौदी ट्रॉफी की विरासत: एक ऐतिहासिक पन्ना बंद
अब तक भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज इंग्लैंड में पटौदी ट्रॉफी के नाम से खेली जाती थी, जो भारत के पहले टेस्ट कप्तानों में से एक इफ्तिखार अली खान पटौदी और उनके बेटे मंसूर अली खान पटौदी के नाम पर थी। यह नाम 2007 से चला आ रहा था और इंग्लैंड में भारत के दौरे की ऐतिहासिक पहचान बन चुका था।
हालांकि इस नाम को बदलने को लेकर क्रिकेट समुदाय में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखी गईं। कुछ पूर्व खिलाड़ियों ने कहा कि इतिहास को नहीं भुलाया जाना चाहिए, वहीं अन्य लोगों ने कहा कि समय के साथ बदलाव भी जरूरी है।
रवि शास्त्री और गावस्कर की राय: दो ध्रुवों की प्रतिक्रियाएं
भारत के पूर्व हेड कोच और अनुभवी कमेंटेटर रवि शास्त्री ने ECB के इस निर्णय का समर्थन किया। उन्होंने कहा:
“समय के साथ चीज़ें बदलती हैं। एंडरसन और तेंदुलकर दोनों आधुनिक युग के दिग्गज हैं और इनके नाम पर ट्रॉफी होना पूरी तरह उचित है।”
इसके उलट, सुनील गावस्कर ने इस बात पर आपत्ति जताई कि तेंदुलकर का नाम ट्रॉफी में पहले क्यों नहीं है। उन्होंने मीडिया से अपील की कि इसे “तेंदुलकर-एंडरसन ट्रॉफी” के नाम से संबोधित किया जाए।
पटौदी मेडल: विरासत को सलाम
BCCI और ECB ने यह सुनिश्चित किया कि पटौदी ट्रॉफी का इतिहास पूरी तरह भुलाया न जाए। अब टेस्ट सीरीज के विजेता कप्तान को एक विशेष सम्मान – पटौदी मेडल – प्रदान किया जाएगा, जिससे पटौदी परिवार और भारतीय क्रिकेट की विरासत को आदर पूर्वक सम्मानित किया जा सके।

ट्रॉफी से जुड़ा भावनात्मक पहलू
एंडरसन का बयान सुनकर हर क्रिकेट प्रेमी का दिल भर आया। उन्होंने कहा:
“जब मैं ट्रॉफी पर अपना नाम तेंदुलकर के साथ देखता हूं, तो अजीब लगता है। ऐसा लगता है जैसे मैं उस स्तर का नहीं हूं। सचिन मेरे लिए हमेशा प्रेरणा रहे हैं।”
इस बात से यह स्पष्ट है कि यह ट्रॉफी केवल सम्मान का प्रतीक नहीं है, बल्कि एक ऐसी भावना है जो खिलाड़ियों और दर्शकों को जोड़ती है।
क्रिकेट का भविष्य और इस नाम का महत्व
इस ट्रॉफी का नाम केवल एक बदलाव नहीं है, बल्कि क्रिकेट के आधुनिक युग में कदम रखने की घोषणा है। जैसा कि बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी ने ऑस्ट्रेलिया-भारत टेस्ट श्रृंखला को नई पहचान दी, वैसा ही अब एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी भी भारत-इंग्लैंड टेस्ट को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाली है।

एक नजर में – ट्रॉफी का सफर
ट्रॉफी नाम | समय अवधि | प्रमुख व्यक्तित्व |
---|---|---|
पटौदी ट्रॉफी | 2007 – 2022 | इफ्तिखार और मंसूर पटौदी |
एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी | 2025 से वर्तमान | जेम्स एंडरसन, सचिन तेंदुलकर |
आखिरी शब्द: जहां भावना, इतिहास और भविष्य मिलते हैं
क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं, एक भावना है। और जब इस भावना को दो ऐसे महान नामों से जोड़ा जाता है, जिनकी वजह से लाखों लोग इस खेल से जुड़े, तो यह सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं रह जाती—यह एक युग की पहचान बन जाती है।
एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी उस सम्मान, समर्पण और संघर्ष की कहानी है, जो दो महान खिलाड़ियों की कड़ी मेहनत और पूरे करियर की सफलता का परिणाम है। आने वाली पीढ़ियां जब इस ट्रॉफी को देखेंगी, तो न केवल जीत को याद करेंगी, बल्कि उस पर लिखे गए दो नामों को पढ़कर प्रेरित भी होंगी।
यह भी पढ़ें- IDFC First में Warburg की वॉर एंट्री RBI ने कहा- ओके