उत्तराखंड की शांत, सुहानी और पहाड़ी वादियों के बीच बसे पौड़ी गढ़वाल के कुई गांव ने हाल ही में एक ऐसा इतिहास रच दिया है, जिसे सुनकर आज पूरा देश गर्व महसूस कर रहा है। यहां जन्मी और पली–बढ़ी 22 वर्षीय बीटेक ग्रेजुएट साक्षी रावत ने भारत की सबसे युवा ग्राम प्रधान बनने का गौरव हासिल किया है।
यह सिर्फ़ एक चुनाव जीतने की कहानी नहीं, बल्कि युवा नेतृत्व, नई सोच और अपने गांव को बदलने की जिम्मेदारी लेने वाली नई पीढ़ी की प्रेरक यात्रा है।
तीन महीने पहले चार्ज संभालने के बाद से साक्षी जिस तरह से अपने गांव को बदलने की दिशा में काम कर रही हैं, वह ग्रामीण भारत की राजनीति और विकास का चेहरा बदलने वाला कदम माना जा रहा है।
◆ साक्षी की यात्रा: शहर से गांव की ओर, सपनों का नया रास्ता

आज के बदलते दौर में जहां अधिकांश युवा ग्रेजुएशन के बाद शहरों में नौकरी या विदेश में भविष्य खोजने निकल जाते हैं, वहीं साक्षी ने इसके उल्टा कदम उठाया—
उन्होंने शहर की नौकरी छोड़ गांव लौटकर लोगों के लिए काम करने का फैसला किया।
INDIA TODAY की रिपोर्ट के अनुसार, साक्षी राजनीति में इसलिए आईं क्योंकि वह वहीं बदलाव लाना चाहती थीं, जहां उनकी जड़ें हैं। कुई गांव में पैदा हुई साक्षी ने बचपन से गांव की समस्याओं को करीब से देखा और समझा था।
परिवार का समर्थन बना सबसे बड़ी ताकत
साक्षी बताती हैं कि—
- उन्हें चुनाव लड़ने का साहस उनके माता-पिता ने दिया
- उनके पिता हर कदम पर उनके साथ खड़े रहे
- परिवार ने हमेशा उन्हें “नेता नहीं, सेवक” बनने की सीख दी
यही सोच उन्हें आज यहां तक लेकर आई है।
◆ संविधान में 21 वर्ष की सीमा — साक्षी ने तोड़ा उम्र का मिथक
भारतीय संविधान किसी भी व्यक्ति को 21 वर्ष की उम्र पूरी होने पर ग्राम पंचायत चुनाव लड़ने का अधिकार देता है।
साक्षी 22 साल की उम्र में चुनाव जीतकर गांव और देश के लिए एक मिसाल बन गईं।
**उनकी जीत एक संदेश है—
“नेतृत्व उम्र नहीं, सोच और जिम्मेदारी देखता है।”**
◆ बीटेक डिग्री का अनोखा उपयोग — गांव की अर्थव्यवस्था बदलने का मिशन
साक्षी ने बायोटेक्नोलॉजी में बीटेक किया है। ग्रामीण राजनीति में आते ही उनका लक्ष्य नए वैज्ञानिक, तकनीकी और आर्थिक मॉडल तैयार करना बन गया।

**उनका प्राथमिक फोकस है—
✔ गांव की अर्थव्यवस्था मजबूत करना
✔ युवाओं का पलायन रोकना
✔ लोकल रोजगार बढ़ाना**
पौड़ी और आसपास के गांवों से सबसे बड़ी समस्या यह है कि युवा नौकरी की तलाश में शहरों की ओर जाते हैं।
साक्षी का मानना है कि—
“अगर गांव में ही रोज़गार मिलेगा, तो पलायन अपने आप कम होगा।”
◆ किसानों के साथ साझेदारी — विदेशी फल, फूल और लोकल उत्पाद
कुई गांव के किसान वर्षों से सेब, दाल, गेहूं, सब्जियों की खेती करते आ रहे हैं।
साक्षी अब इन किसानों के साथ मिलकर नया प्रयोग करने पर काम कर रही हैं—
उनकी 3 मुख्य योजनाएं:
1. एक्सॉटिक फल उगाना
- ड्रैगन फ्रूट
- कीवी
- स्ट्रॉबेरी
- एवोकाडो
उत्तराखंड की जलवायु इन फलों के लिए उपयुक्त है, जिनकी बाजार में अधिक मांग है।
2. फूलों की खेती (Floriculture)
साक्षी फूलों की खेती को गांव की नई पहचान बनाना चाहती हैं।
गेंदा, लिलियम, गुलदाउदी, ग्लैडियोलस जैसे फूलों की किस्में किसानों को नई आय दे सकती हैं।
3. गांव में प्रोसेसिंग यूनिट
- जैम
- जूस
- ड्राई फ्रूट
- फूलों से अगरबत्ती
इन सबके लिए छोटे उद्योग शुरू किए जाएंगे।
◆ एजेंडा— गांव के लिए उनका “ड्रीम प्लान”
ग्राम प्रधान बनते ही उन्होंने अपनी टीम को तीन शब्दों में संदेश दिया—
“शिक्षा, रोजगार और कनेक्टिविटी।”
(1) बच्चों के लिए आधुनिक स्कूलिंग
- डिजिटल क्लासरूम
- विज्ञान प्रयोगशाला
- शिक्षा में स्थानीय भाषा + आधुनिक टेक
- स्पोर्ट्स सुविधाएँ
(2) युवाओं के लिए स्किल ट्रेनिंग
- कंप्यूटर स्किल
- मोबाइल रिपेयरिंग
- डिजिटल मार्केट
- पर्यटन (Tourism) ट्रेनिंग
(3) महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना
- स्वयं सहायता समूह
- सिलाई–कढ़ाई यूनिट
- होमस्टे व्यवसाय
- लोकल उत्पादों की ब्रांडिंग
साक्षी का मानना है कि—
“गांव तभी आगे बढ़ेगा जब महिलाएं निर्णय प्रक्रिया में शामिल होंगी।”
(4) मजबूत सड़क और इंटरनेट कनेक्टिविटी
उन्होंने सरकार को प्रस्ताव भेजा है कि कुई गांव से मुख्य सड़क तक 4.5 किमी की नई सड़क बनाई जाए।
इसके साथ ही गांव में तेज इंटरनेट के लिए निजी कंपनियों से बातचीत शुरू हो चुकी है।
◆ कॉलेज के दिनों में बना समाज से जुड़ाव
साक्षी का लोकल कम्युनिटी से कनेक्शन कॉलेज के समय शुरू हुआ।
पौड़ी के पास उनके कॉलेज में समाजशास्त्र और बायोटेक से जुड़े असाइनमेंट मिलते थे, जिनमें अक्सर उन्हें गांव-गांव जाकर लोगों से बातचीत करनी पड़ती थी।
इन परियोजनाओं के दौरान उन्होंने जाना—
- लोगों की दिक्कतें
- बच्चों की शिक्षा की स्थिति
- महिलाओं के सामने आने वाली मुश्किलें
- रोजगार की कमी
- स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी
यह अनुभव उनके मन में बैठ गया।
फिर उन्होंने सोचा—
“क्यों न मैं अपने ही गांव में यह बदलाव लाऊं?”
और यहीं से शुरू हुई उनकी नेतृत्व यात्रा।
◆ नई पीढ़ी की नई सोच — ग्रामीण भारत में बदलाव की बयार
साक्षी आज भारत की नई ग्रामीण राजनीति का चेहरा हैं।
उनकी कहानी बताती है कि—
- युवा राजनीति से दूर नहीं
- गांव में भी शानदार भविष्य बनाया जा सकता है
- आधुनिक शिक्षा और परंपरा मिलकर नया भारत बना सकती है
- नेतृत्व उम्र का मोहताज नहीं
कुई गांव में लोग कहते हैं—
“साक्षी बच्चों जैसी उम्र की हैं, लेकिन सोच बड़े नेताओं जैसी।”
◆ साक्षी रावत: क्यों हैं आज के भारत की प्रेरणा?
✔ युवाओं को नेतृत्व के लिए प्रेरित करती हैं
✔ लड़कियों को साहस देती हैं कि “वे कुछ भी कर सकती हैं”
✔ गांवों को वैज्ञानिक विकास मॉडल से जोड़ रही हैं
✔ महिलाओं की आवाज़ को पंचायत तक पहुंचा रही हैं
✔ सरकार और जनता के बीच सेतु का काम कर रही हैं
उनकी सोच यह है—
“गांव तभी बदलेगा जब गांव का युवा आगे आएगा।”
◆ निष्कर्ष — यह सिर्फ शुरुआत है, बदलाव अभी बाकी है
साक्षी रावत आज सिर्फ देश की सबसे युवा ग्राम प्रधान नहीं, बल्कि उम्मीद, साहस और नई सोच का प्रतीक हैं।
वह दिखाती हैं कि—
“अगर इरादा सच्चा हो तो छोटी उम्र में भी बड़े फैसले लिए जा सकते हैं।”
कुई गांव की यह बेटी उन हजारों युवाओं की प्रेरणा बनेगी जो अपने गांव, अपनी मिट्टी और अपने लोगों के लिए काम करना चाहते हैं।
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