जन्माष्टमी और गीत गोविंद — आध्यात्मिक सही तालमेल
आने वाली जन्माष्टमी का पावन पर्व जब पास आता है, तो भक्ति और उत्साह का माहौल चारों ओर फैल जाता है। मंदिरों में घंटा-घड़ियाल की घंटियों से सराबोर, गीतों में गोविंद का नाम गूंजता है। इस समय भक्तों के बीच एक भजन जो विशेष स्थान रखता है, वह है गीत गोविंद। कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और बाबा बागेश्वर इसे “भगवान कृष्ण का सबसे चमत्कारी गीत” मानते हैं।
गीत गोविंद क्या है — एक संक्षिप्त परिचय

गीत गोविंद 12वीं सदी के महान कवि जयदेव द्वारा रचित संस्कृत साहित्य का अनुपम रत्न है। इस कृति में श्रीकृष्ण और राधा रानी के प्रेम, विरह और मिलन की भावनाओं का सुगठित वर्णन है। यह केवल एक प्रेम-कथा नहीं, बल्कि दैवीय प्रेम और भक्ति की अद्वितीय अभिव्यक्ति है
यह काव्य 12 अध्यायों (सर्ग) में विभाजित है और प्रत्येक अध्याय प्रबंध (प्रबंध भाग) के रूप में रचित है, जिनमें से प्रत्येक प्रबंध में दो अष्टपदियाँ होती हैं
संगीत और संप्रेषण की शास्त्रीय विधा
गीत गोविंद केवल साहित्य नहीं, संगीत का खजाना भी है। इसमें राग और ताल का विशेष उल्लेख मिलता है—जैसे मालवगौड, वसंत, देसी आदि राग, और यति, रूपक, एकताल जैसे ताल । ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर में इसे ओडिसी संगीत परंपरा में दैनिक रूप से गाया जाता रहा है और यह परंपरा आज भी जारी है ।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
गीत गोविंद को श्रीमद्भागवत पुराण के समान धार्मिक प्रतिष्ठा प्राप्त है। यह काव्य श्रीवल्लभ संप्रदाय में विशेष रूप से पूजा एवं भक्ति का माध्यम है।
कवि जयदेव की शृंगारिक शैली ने प्रेम को सिर्फ मानवीय नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप में पिरोया है—जैसे राधा और कृष्ण का प्रेम नयिका–नायक, भक्त–देव, और जीव–ब्रह्म के रूपक में प्रस्तुत है
कथावाचकों की मान्यता: जब गीत गोविंद गूंझता है, ठाकुर जी भी आते हैं

कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय जी कहते हैं—जब कोई भक्त नित्य खाली आसन पर भाव से गीत गोविंद पाठ करता है, तो कुछ दिनों में अनुभव होता है कि बाल गोपाल (कृष्ण) उसी आसन पर विराजमान होकर भजन सुन रहे हैं। वे मानते हैं कि यह विधि सिद्ध है और भक्ति में स्वतः प्रभु की उपस्थिती होती है।
इसी प्रकार, बाबा बागेश्वर जी भी कहते हैं, यदि कोई भक्त मुक्त कंठ से गीत गोविंद सुनता है, तो ठाकुर जी सुनने अवश्य आते हैं। उनकी यह मान्यता भक्तों में गीत की आस्था और बढ़ा देती है।
रचनात्मकता और चमत्कारी कथाएँ
जयदेव की जीवन कथा में एक लोकश्रुति है—जब एक पद पूरी करना मुश्किल हो गया था, तब भगवान कृष्ण स्वरूप में प्रकट हुए और भक्त की अनुपस्थिति में उस छंद को ही पूरा कर गए । यह दर्शाता है कि कृति में प्रभु की भक्ति सहित अनुपस्थिति में भी उपस्थिती का अनुभव है।
संगीत नाट्य: मंच और प्रदर्शन कला
मुंबई में आयोजित एक संगीत नाट्य प्रस्तुति “Celebrating Janmashtami through Geet Govind” में, गीत गोविंद की 12 अवस्थाओं को नृत्य और संगीत के माध्यम से जीवंत किया गया। इसमें कृष्ण और राधा के बीच प्रेम, विरह, झटका और पुनर्मिलन की भावनाओं को नृत्य और संगीत की माध्यमिक भाषा में प्रस्तुत किया गया।
निष्कर्ष: जन्माष्टमी पर गीत गोविंद का समर्पण
जब जन्माष्टमी पर भक्त गीत गोविंद को गान करते हैं—चाहे मंदिर में, घर पर या आध्यात्मिक संगोष्ठियों में—it is not just a song—it is a divine summons, a spiritual magnetism, that calls Thakur Ji himself to sit on the offered seat and listen.
जहां भक्ति है, वहां स्वर नहीं रुकते, और गीत गोविंद का हर शब्द कृष्ण की शरण का निमंत्रण है।
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