बिहार चुनाव: मुद्दों की जंग, जमीन की सियासत और वोटर की सोच — पूरा विश्लेषण
“कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा,
मुझे मालूम है किस्मत का लिखा भी बदलता है।”
बशीर बद्र का यह शेर बिहार के उन उम्मीदवारों पर बिल्कुल सही बैठता है, जिन्होंने सिर्फ नारे, भीड़ या जातीय समीकरण के भरोसे नहीं, बल्कि जमीनी मेहनत, घर-घर दस्तक और लोगों से सीधा संवाद करके चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया।
बिहार विधानसभा चुनाव अब सिर्फ सियासी बयानबाजी का खेल नहीं रहा, बल्कि लोगों के जीवन, रोजगार, सम्मान और सुरक्षा का सवाल बन चुका है।
इस चुनावी मुकाबले ने एक बात साफ कर दी—
बिहार का वोटर अब जाग चुका है।
वह पूछ रहा है, “मुझे क्या मिलेगा?”

आइए विस्तार से समझते हैं वे प्रमुख मुद्दे, जिनपर बिहार का चुनाव 2025 टिका है —
1. कट्टा प्रथा और अपराध बनाम कानून व्यवस्था
बिहार में चुनावी रैलियों के बीच एक वीडियो वायरल हुआ जहाँ एक बच्चा मंच पर चढ़कर कहता है—
“तेजस्वी भैया मुख्यमंत्री बनेंगे तो हम कट्टा लेकर घूमेंगे और रंगदार कहलाएँगे।”
यह संवाद सिर्फ एक मजाक नहीं, बल्कि एक राजनीतिक और सामाजिक चिंता का संकेत है।
- BJP और NDA इस वीडियो को लेकर RJD पर हमलावर है।
- प्रधानमंत्री ने भी अपनी रैली में कट्टा, करप्शन और जंगलराज को RJD की पहचान बताया।
यह मुद्दा गहराई से भावनात्मक है, क्योंकि बिहार ने 90s और 2000s के शुरुआती सालों में अपराध का दौर देखा है।
वोटर पूछ रहा है:
| सवाल | भाव |
|---|---|
| क्या बिहार फिर वही दौर देखेगा? | डर |
| क्या सुरक्षा बहाल रहेगी? | उम्मीद |
यानी कानून व्यवस्था इस चुनाव में सबसे तेज़ बहस वाला विषय है।
2. भाई बनाम भाई — यादव परिवार का संघर्ष
तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव के बीच दूरियां अब छुपी नहीं हैं।
तस्वीरें वायरल हुईं, बयानों में तल्खी दिखी और अब तेज प्रताप अपनी अलग पार्टी बना चुके हैं।
- महुआ से तेज प्रताप चुनाव लड़ रहे हैं
- जबकि तेजस्वी राघोपुर से
तेज प्रताप का बयान:
“अगर तेजस्वी महुआ में प्रचार करने आएंगे, हम राघोपुर जाकर घर-घर वोट मांगेंगे।”
यह सिर्फ राजनीतिक नहीं, भावनात्मक टकराव है।
इसका असर कहाँ होगा?
- यादव बेल्ट में RJD का वोट बैंक बंट सकता है
- यह महागठबंधन के लिए बड़ा नुकसान हो सकता है
3. नौकरी और रोजगार — सबसे बड़ा मुद्दा
यह मुद्दा हर घर में है।
हर गली, हर चाय की दुकान, हर पंचायत में यही सवाल—
“बच्चे नौकरी कब पाएँगे?”
महागठबंधन का वादा:
- हर परिवार को एक सरकारी नौकरी
- सरकार बनते ही 20 दिन में कानून
लेकिन यह वादा संख्या और संसाधन के सवालों में उलझा दिखाई देता है।
NDA का जवाब:
- 1 करोड़ रोजगार
- उद्योग और MSME विकास की योजना
वास्तविकता:
बिहार में बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत से कई गुना अधिक है
लोग अभी भी पंजाब, महाराष्ट्र, दिल्ली और गुजरात में काम करने को मजबूर हैं।
यानी यह मुद्दा दिल को भी और पेट को भी छूता है।
4. जंगलराज बनाम महा-जंगलराज — सियासी नैरेटिव की लड़ाई
NDA शराबबंदी के बाद बढ़े अपराध, ठेकेदारी और आपराधिक मामलों का हवाला देकर वर्तमान सरकार को निशाने पर ले रही है।
दूसरी तरफ, तेजस्वी ने कहा:
“जंगलराज नहीं, यह महाजंगलराज है।”
दुलारचंद यादव की हत्या, व्यापारियों की हत्याएँ और पारस हॉस्पिटल मामले का जिक्र चुनावी भाषणों में लगातार हो रहा है।
यह मुद्दा पर्सनल सिक्योरिटी और समाजिक विश्वास से जुड़ा है।
5. महिला सम्मान और सशक्तिकरण — आधी आबादी की ताकत
बिहार की राजनीति में इस बार महिलाओं की सहभागिता निर्णायक है।
NDA के प्रमुख पहल:
- जीविका दीदी मॉडल
- महिला उद्यमी योजना (₹10,000 प्रारंभिक सहायता)
ग्राउंड रिपोर्टों में महिलाओं ने कहा:
“सरकार ने पहली बार हमारी जेब में पैसा दिया है।”
इसके जवाब में तेजस्वी का बड़ा दांव:
- ‘माई-बहिन योजना’ के तहत ₹30,000 सीधे अकाउंट में
यह मुद्दा सिर्फ इमोशनल नहीं, आर्थिक सशक्तिकरण से जुड़ा है।
महिलाएँ अब वोटर नहीं, पॉलिटिकल डिसीजन मेकर हैं।
6. पलायन — सबसे गहरा दर्द
बिहार हर साल अपने भविष्य (युवाओं) को बाहर भेज देता है।
- ट्रेनें भरी रहती हैं
- गांव खाली होते जा रहे हैं
- परिवार टूट जाते हैं
हर घर की कहानी है:
“बाबूजी पंजाब में, चाचा दिल्ली में, भाई सूरत में और बेटा हैदराबाद में…”
दोनों गठबंधनों का दावा:
- हम पलायन रोकेंगे
- बिहार में ही नौकरी देंगे
लेकिन जनता जानती है—
सिर्फ घोषणा पत्र से उद्योग नहीं लगते।
7. वोटर लिस्ट और ‘वोट चोरी’ विवाद
महागठबंधन ने चुनाव आयोग और BJP पर आरोप लगाया:
- अल्पसंख्यकों के नाम हटाए गए
- गलत नाम जोड़कर फर्जी वोटिंग कराई गई
यह मुद्दा:
- लोकतांत्रिक विश्वसनीयता
- और अल्पसंख्यक समुदाय के विश्वास से जुड़ा है।
चुनाव का असली फैसला कौन करेगा?
| मतदाता वर्ग | प्रभाव |
|---|---|
| महिलाएँ | सबसे निर्णायक |
| पहली बार वोट देने वाले युवा | सबसे भावनात्मक और रोजगार केंद्रित |
| प्रवासी परिवार | बदलाव के पक्ष में झुकाव |
14 नवंबर को नतीजे आएंगे —
और बिहार का भविष्य तय होगा कि:
➡️ क्या यह बदलाव की तरफ बढ़ेगा
या
➡️ जारी व्यवस्था को मंजूरी देगा।
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निष्कर्ष
बिहार चुनाव सिर्फ सत्ता का संघर्ष नहीं है,
यह विचारों, यादों, उम्मीदों और आक्रोश का संगम है।
बिहार का वोटर अब कह रहा है:
“न जात, न भात —
पहले नौकरी, सुरक्षा और सम्मान की बात।”


