बीप-बीप करती मशीनें, ऑक्सीजन की हल्की फुफकार, और फिर… गोलियों की तड़तड़ाहट। पारस हॉस्पिटल का ICU उस दिन अस्पताल कम, जंग का मैदान ज़्यादा लग रहा था।”
पटना शहर के बीचोंबीच स्थित पारस हॉस्पिटल, जो अपने अत्याधुनिक उपचार और सुविधाओं के लिए जाना जाता है, 16 जुलाई की रात उस समय थर्रा उठा जब कुछ अज्ञात हमलावर अस्पताल की सबसे संवेदनशील जगह — आईसीयू — में घुस आए और चार गोलियां दाग दीं।
इस वारदात ने न सिर्फ अस्पताल प्रबंधन बल्कि पूरे बिहार की स्वास्थ्य प्रणाली, सुरक्षा व्यवस्था और कानून-व्यवस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया है। आइए, घटना की तह में चलते हैं।
घटना की शुरुआत: एक सामान्य सी रात और फिर…
सोमवार रात का समय था, घड़ी ने ठीक 9:35 बजाए थे। आईसीयू में भर्ती सात गंभीर मरीज, नर्सिंग स्टाफ, एक डॉक्टर और एक अटेंडेंट मौजूद थे। तभी तीन लोग, जो खुद को ‘रिश्तेदार’ बता रहे थे, अस्पताल के सुरक्षाकर्मियों को चकमा देते हुए अंदर घुसे।

आईसीयू के दरवाज़े पर पहुंचे ही थे कि उनमें से एक ने जैकेट से पिस्तौल निकाली और एक बिस्तर की ओर इशारा किया। चंद सेकंडों में चार गोलियां दागी गईं — दो हवा में और दो सीधा एक मरीज की ओर।
मरीज की मौके पर ही मौत हो गई। उसका नाम था राहुल सिंह (उम्र 34 वर्ष) — जो दो दिन पहले सड़क हादसे के बाद आईसीयू में भर्ती कराया गया था।
चश्मदीद का बयान: “हम सोच रहे थे बम फट गया…”
आईसीयू में ड्यूटी पर मौजूद नर्स कविता कुमारी का कहना है:
“पहले तो हमें लगा कि कोई मेडिकल सिलेंडर फट गया है। लेकिन जब बदमाशों को पिस्तौल ताने देखा, तो हमारे हाथ-पांव फूल गए। कोई कुछ समझ नहीं पा रहा था।”
एक और स्टाफ सदस्य के अनुसार, गोली मारने के बाद बदमाश बेहद शांत भाव से अस्पताल के पिछले गेट से निकल गए। ये सुनियोजित हमला लग रहा था।

पुलिस की जांच: हत्या या गैंगवार की आड़?
घटना की सूचना मिलते ही पटना पुलिस, एसएसपी राजीव मिश्रा के नेतृत्व में, मौके पर पहुंची। सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए, अस्पताल स्टाफ से पूछताछ हुई। शुरुआती जांच में यह बात सामने आई कि मृतक राहुल सिंह पर क्राइम शीट पहले से दर्ज थी। वह एक स्थानीय गैंग से जुड़ा हुआ बताया जा रहा है।
पुलिस का अनुमान है कि यह घटना गैंग राइवलरी का नतीजा हो सकती है।
“हम इसे सिर्फ हत्या नहीं कह सकते, यह एक संदेश देने की कोशिश भी हो सकती है। अस्पताल जैसी जगह में घुसकर हत्या करना बिहार में कानून की नई चुनौती है।”
– एसएसपी राजीव मिश्रा
अस्पताल प्रशासन की लाचारी: “हम डॉक्टर हैं, सिक्योरिटी गार्ड नहीं”
पारस हॉस्पिटल के निदेशक डॉ. अनिल सिन्हा ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा:
“हम अपने स्तर पर हर सुरक्षा व्यवस्था बनाए हुए हैं, लेकिन जब हथियार लेकर कोई घुस आए, तो यह प्रशासन और पुलिस की विफलता मानी जानी चाहिए। हम डॉक्टर हैं, सिक्योरिटी गार्ड नहीं।”
उन्होंने यह भी बताया कि घटना के बाद मरीजों में डर का माहौल है और कई मरीजों के परिजन उन्हें डिस्चार्ज कर घर ले गए हैं।
सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल: कैसे टूटी अस्पताल की ‘सुरक्षा चेन’?
पारस हॉस्पिटल में तीन सुरक्षाकर्मी तैनात रहते हैं, जिनमें से एक ICU के बाहर था। लेकिन वो हमलावरों को रोक नहीं सका।
बड़े सवाल ये हैं:
- क्या अस्पतालों में मेटल डिटेक्टर और हथियार चेकिंग जरूरी नहीं होनी चाहिए?
- क्या किसी भी आम ‘परिजन’ को ICU जैसे संवेदनशील स्थान में जाने की इजाज़त होनी चाहिए?
- और अगर राहुल सिंह पर आपराधिक मामले दर्ज थे, तो क्या पुलिस की निगरानी में उसका इलाज नहीं होना चाहिए था?
परिवार की चुप्पी और कुछ सवाल
राहुल सिंह के परिजनों ने मीडिया से दूरी बनाई हुई है। किसी ने खुलकर कुछ नहीं कहा। कुछ स्थानीय सूत्रों के अनुसार, यह हत्या किसी पुराने झगड़े का नतीजा थी।
एक पड़ोसी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया:
“राहुल पहले भी जेल जा चुका है। वो गलत संगत में पड़ गया था। शायद उसी का नतीजा है ये। लेकिन अस्पताल में हत्या… ये बहुत डरावना है।”
समाज पर असर: डर, अविश्वास और असुरक्षा का माहौल
यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की मौत की कहानी नहीं है — यह पूरे समाज में भरोसे की हत्या है। अस्पताल, जिसे जीवन देने की जगह माना जाता है, वह अब खुद असुरक्षित महसूस कर रहा है।
बुज़ुर्ग मरीज श्यामलाल जी, जिनका इलाज उसी ICU में चल रहा था, कहते हैं:
“हम सोच भी नहीं सकते थे कि अस्पताल के अंदर ऐसा कुछ हो सकता है। अब लग रहा है कि घर ही सुरक्षित है, अस्पताल नहीं।”
राजनीति भी कूदी मैदान में
घटना के तुरंत बाद विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा:
“बिहार में अपराधी बेखौफ हो गए हैं। अब अस्पताल भी सुरक्षित नहीं। ये सरकार की नाकामी का नतीजा है।”
वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घटना की निंदा करते हुए कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिलाया।
कानून में बदलाव की मांग
घटना के बाद बिहार मेडिकल एसोसिएशन ने सरकार से मांग की है कि अस्पतालों की सुरक्षा को लेकर अलग कानून लाया जाए।
प्रमुख मांगें:
- अस्पतालों में प्रवेश पर सख्ती
- आईसीयू और ऑपरेशन थिएटर में प्रवेश प्रतिबंध
- 24×7 पुलिस निगरानी
- गंभीर अपराधियों के इलाज में पुलिस एस्कॉर्ट अनिवार्य
एक सवाल जो रह गया: क्या यह आख़िरी बार होगा?
पटना की इस घटना ने देशभर में एक नई बहस को जन्म दे दिया है — क्या हमारे अस्पताल सुरक्षित हैं?
स्वास्थ्यकर्मी अब डर के साये में काम कर रहे हैं। मरीजों के परिवार सहमे हुए हैं। पुलिस हाथ-पैर मार रही है, पर असली चुनौती है भविष्य की घटनाओं को रोकना।
निष्कर्ष: दवा के घर में अब दहशत क्यों?
पारस हॉस्पिटल में जो हुआ, वो बिहार के सिस्टम की कमजोरी की एक बानगी भर है। अस्पताल की दीवारों में अब सिर्फ कराह नहीं, डर भी घुल चुका है।
इस घटना ने हमें यह सोचने पर मजबूर किया है कि:
- क्या हमारी प्राथमिकताएं सही हैं?
- क्या जीवन रक्षक स्थानों की सुरक्षा पर पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है?
जब तक इन सवालों के जवाब नहीं मिलते, तब तक हर हॉस्पिटल का ICU एक आशंका की जगह बनता रहेगा।
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