पटना। शनिवार को लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई वाली बिहार सरकार पर तीखा हमला बोला। आरोप लगाया है कि बिहार में कानून-व्यवस्था चरमराई हुई है और सरकार इसमें पूरी तरह नाकाम साबित हो रही है। उन्होंने यह बात पटना के पारास अस्पताल में हुए दिल दहला देने वाले दिन के एक मर्डर कांड के संदर्भ में कही, जिसमें पांच अज्ञात हिंसक तत्वों ने किसी अन्य आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी थी।
𝟭. आम जनता के लिए संदेश – “कानून और अपराधियों का साम्राज्य”
चिराग पासवान ने अपने जनता को दिए गए बयान में कहा कि इस तरह का कांड यह साबित करता है कि अपराधी कानून और सत्ता को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं। उन्होंने कहा:
“मर्डर रोज हो रहे हैं। अपराधियों का मनोबल आसमान छू रहा है। पुलिस और प्रशासन की रणनीति समझ से परे है।”
उनके इस बयान से साफ़ है कि अपराधियों को मिली इस घोर आज़ादी ने आम जनता की नींद छुड़ा दी है। अस्पताल का सुरक्षा-प्रबंध तत्कालीन राजधानी पटना के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य के लिए ख़तरे की घंटी साबित हुआ।
𝟮. नीयम-व्यवस्था के सरोकार – संघीय ढांचे की भूमिका
चिराग पासवान ने केंद्रीय एवं राज्य सरकारों के बीच बनी संवैधानिक जिम्मेदारी का उल्लेख करते हुए कहा कि कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है। उन्होंने कहा:
“जब प्रधानमंत्री विकास योजनाएं लेकर आते हैं, तो उनकी प्राथमिकताएं स्पष्ट होती हैं। वह बिहार को विकसित राज्य बनाना चाहते हैं, लेकिन कानून-व्यवस्था से जुड़े सवाल राज्य सरकार पर ही आते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री को दोष देना उचित नहीं, बल्कि यह पूरी तरह से राज्य सरकार की जिम्मेदारी है।”
इस बयान का मतलब यह है कि केंद्र सरकार केंद्रीय योजनाओं, विकास और आर्थिक सुधारों की दिशा देख सकती है लेकिन क़ानून एवं व्यवस्था का खेल राज्य सरकार के हाथ में ही है।
𝟯. पारास अस्पताल कांड का सच – बीच सफ़ेद दिन में खौफ़नाक वारदात
कुछ दिन पहले पटना स्थित लाजवाब सुविधा से युक्त पारास अस्पताल में यह वीभत्स घटना घटी। अस्पताल में इलाजाधीन एक आपराधिक पिछला पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति था, जिसे पाँच द्वेषात्मा अपराधियों ने दिनदहाड़े गोली मार दी। यह एक व्यवस्थित हमलाहोने का मामला माना गया, जिसमें अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह चूकी हुई मिली।

चिराग पासवान ने इसे सरकार की “निष्क्रियता और जमीनी स्तर पर नियंत्रण की विफलता” कहा। उन्होंने कहा, “इस घटना ने अपराधियों की बेखौफ सोच और राज्य की बेबसी को उजागर किया है।” उनका यह बयान राज्य में कानून व्यवस्था को लेकर आम लोगों के मन में गहराई से आशंकाएँ पैदा कर रहा है।
𝟰. सोशल मीडिया पर मुखरता – ‘ऑडेसिटी ऑफ क्रिमिनल्स’
चिराग पासवान ने इस पूरे मामले पर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा:
“मर्डर हो रहे हैं हर दिन। अपराधियों का मनोबल आसमान छू रहा है। पुलिस और प्रशासन की रणनीति समझ से परे है। पारास अस्पताल की Residential Neighbourhood में हमला इस बात का प्रमाण है कि अपराधी खुलेआम चुनौती दे रहे हैं।”
उनकी सोशल मीडिया गतिविधि ने राज्य के कानून व्यवस्था को लेकर चर्चाओं को एक नया मोड़ दे दिया है। विपक्षी दलों द्वारा उठाए जा रहे सवालों की भी पृष्ठभूमि तैयार हुई है। सोशल मीडिया पर इस तरह की प्रतिक्रियाएं अक्सर भावनाओं को तीव्र बनाती हैं और सरकार को भी समीक्षात्मक दृष्टिकोण अपनाने पर मजबूर करती हैं।
𝟱. विधानसभा और प्रशासन – क्या हुआ और क्या होना चाहिए?
बीते कुछ वर्षों में बिहार की विधानसभा में कानून और व्यवस्था को लेकर कई बार संवाद हुए। लोक जनशक्ति पार्टी समेत विपक्ष ने समय-समय पर राज्य सरकार पर आरोप लगाए कि अपराध नियंत्रण में विफल रही है। इनमें कुछ प्रमुख मुद्दे:

- गिरोहों की सक्रियता,
- मुठभेड़ों पर असंतुलित मीडिया कवरेज,
- पुलिस महकमे में संसाधनों की कमी और प्रशिक्षण की कमी,
- नाबालिग अपराधियों में वृद्धि।
चिराग पासवान ने कहा कि अपराध नियंत्रण सिर्फ पुलिसिंग का मामला नहीं है, बल्कि प्रशासनिक, न्यायिक और सामाजिक परिवर्तनों की ज़रूरत है। साथ ही, अस्पतालों, बाज़ारों, शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक स्थानों में सुरक्षा की पुनर्खरीद को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
𝟲. मतदाता सूची विवाद – विपक्ष को पलटवार
उसी सभा में चिराग पासवान ने मतदाता सूची में विसंगतियों के आरोपों को भी कठोर तरीके से खारिज़ किया। उन्होंने कहा कि यह पूरी प्रक्रिया अभी आंशिक रूप से भी नहीं हुई है, अतः आरोप लगाने वालों द्वारा बिना ठोस प्रमाण के फैलाया गया यह आरोप ‘बेसिर पैर की बात’ है।
उन्होंने कहा:
“प्रक्रिया पूरी नहीं हुई, फिर किसी तरह की मैनिपुलेशन कैसे हो सकती है? यह महज गलत जानकारी फैलाने की एक किस्म है।”
इससे साफ़ संकेत मिलता है कि उनकी नजर में विपक्षी आरोप “राय का जाल फैला रहे हैं” और उन्हें “इंजनियर” करके सवाल उठाए जा रहे हैं।
𝟕. निर्वाचन आयोग पर भरोसा जताया
चिराग पासवान ने चुनाव आयोग पर पूरी तरह भरोसा जताया। उनका कहना था कि आयोग ने पूरी पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा के साथ यह प्रक्रिया चलायी है। यदि किसी असंगति का सार्वजनिक संज्ञान होता, तो उनकी पार्टी भी अवश्य आवाज़ उठाती।
“कम से कम हमारी पार्टी तो समय पर आवाज़ उठाती है जब वैश्विक अन्याय होता है, राष्ट्रीय या राज्यस्तरीय स्तर पर।”
इससे उन्होंने यह भी संकेत दिया कि लोक जनशक्ति पार्टी–रामविलास की राह सत्ता के समीप भी नियमों और न्याय की रक्षा के लिए खुलकर राय रखती रहेगी।
𝟖. आगामी विधानसभा चुनावों में असर?
बिहार में अगले विधानसभा चुनावों से पहले कानून व्यवस्था का यह मुद्दा मुख्य चुनावी मुद्दों में से एक बन सकता है। चिराग पासवान एक युवा नेता के तौर पर इस मुद्दे को आगे बढ़ा रहे हैं, जिससे उनके राजनीतिक भविष्य को मजबूत करने की कोशिश की जा रही है। यदि जनता इस विषय को लेकर जागरूक होती है, तो नीतीश सरकार को जवाबदेह बनना पड़ेगा। राजनीतिक समीक्षक यह मानते हैं कि चुनावों के दृष्टिकोण से यह हमला बहुत रणनीतिक हो सकता है—
- राज्य में स्थिति की निगरानी,
- पुलिस-प्रशासन में आमूलचूल परिवर्तन,
- अपराधियों के विरुद्ध सख्ती,
- और अस्पतालों, बाजारों, परिवहन आदि सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा को प्राथमिकता देना।
इन सभी कदमों को वोट बैंक की दृष्टि से भी जोड़ा जा सकता है।
𝟵. सरकार की प्रतिक्रिया क्या हो सकती है?
हालांकि अभी तक नीतीश कुमार या उनके मंत्रिमंडल ने इस पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन उम्मीद है कि ए.डी.जी., गृह विभाग या मुख्यमंत्री कार्यालय से जल्द कोई बयान आएगा। राज्य सरकार आम तौर पर दो प्रमुख मोर्चों पर काम कर सकती है—
- अपराधियों की गिरफ्तारी और देशी गिरोहों पर छापेमारी की सूचना,
- विधानसभा में सवाल उठाकर विपक्षी आरोपों का खंडन।
यहाँ यह बात महत्वपूर्ण बनती है कि राज्य सरकार अपराधियों के विरुद्ध अभियान छेड़कर अपने समर्थन को मजबूत करने की कोशिश करेगा, अथवा चिराग पासवान के बयानों को ‘राजनीतिक बयान बाजी’ कहकर खारिज कर देगा।
𝟭𝟬. दिल्ली–पटना कनेक्शन: केंद्र कैसे जुड़ता है
चूंकि बिहार केंद्र शासित राज्य नहीं है, बल्कि पूर्ण राज्य की संरचना पर चलता है, इसलिए प्रधानमंत्री केवल विकास योजनाओं, रेलवे, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि में भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन, कानून व्यवस्था का पूरा अधिकार राज्य के हाथ में रहता है। चिराग का यह तर्क बिलकुल संघीय संरचना के अनुकूल है।
फिर भी, राज्य सरकार यह सवाल पहले भी रख चुकी है कि इन मुरदरों और बुलंद अपराधियों को “कार में सवार दिखा, फिर भाग गया” जैसी स्थितियां आ रही हैं—जिसका संकेत है कि सड़क सुरक्षा, ट्रैफिक पुलिसिंग और सार्वजनिक स्थानों पर सीसीटीवी के अभाव में राज्य सरकार पूरी तरह उदासीन है।
𝟭𝟭. आर-पार की लड़ाई के संकेत
चिराग पासवान ने अपने बयान में संकेत दिए कि यदि राज्य सरकार कानून-व्यवस्था सुधारने में नाकामयाब होती है, तो उनकी पार्टी मजबूरी में प्रदर्शनात्मक कदम उठाने को विवश हो सकती है—जैसे कि जनसभाएं, सांस्कृतिक संकट rallies, या विधानसभा में विरोध प्रदर्शन। उन्होंने स्पष्ट संकेत दिया कि निर्वाचन आयोग की प्रक्रिया में भी पारदर्शिता बनी रहनी चाहिए।
𝟭𝟮. विशेषज्ञों की सलाह और सुझाव
राजनीतिक विश्लेषक और अपराध नियंत्रण विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रदेश में सुधार के लिए नीचे दिए गए बिंदु अत्यावश्यक हैं:
- पुलिस को बेहतर प्रशिक्षण व भारी हथियारों/गाड़ी सुविधा से लैस करना,
- गफलत भरी किसी भी घटना पर तुरंत Special Investigation Team गठित करना,
- अस्पतालों, बस स्टैंड्स, रेलवे/बस-टर्मिनलों पर CCTV का व्यवस्थित संचालन,
- तत्कालीन राज्य स्तरीय अपराध नियंत्रण मिशन (Task Force) बनाकर अपराधियों का प्रतिरोध,
- और जनता से अधिक सशक्त भागीदारी के लिए समुदाय पुलिसिंग की पहल।
इन बिन्दुओं का पालन करने पर ही तत्कालीन सरकार सुरक्षा का भरोसा लौटाने में सक्षम हो सकती है।
𝟭𝟯. जनता की प्रतिक्रियाएँ – सोशल मीडिया से आम राय तक
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे X, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर पर बहुतायत प्रतिक्रियाएं आ रहीं हैं। अधिकांश लोग चिराग के इस बयान से सहमत हैं और कहते हैं:
“अगर अस्पताल में गोली चल सकती है, तो समाज में कहीं भी आप सुरक्षित नहीं हो। सरकार ‘चालू’ ही नहीं, ‘चार्ज’ पर होनी चाहिए।”
कई सरकारी अधिकारी और कर्मचारी भी मानते हैं कि पारास अस्पताल मर्डर कांड राज्य व्यवस्था का घोर नमूना है। वहीं, कुछ समर्थक दलों का कहना है कि चिराग इस मुद्दे को चुनावी राजनीति का हिस्सा बना रहे हैं।
𝟭𝟰. निष्कर्ष
बिहार में कानून व्यवस्था और अपराध नियंत्रण की यह लड़ाई अब सिर्फ एक घटना तक सीमित नहीं रही है। यह राज्य की सियासी, संवैधानिक व प्रशासनिक प्रणाली की परीक्षा बन चुकी है। चिराग पासवान के इस हमले से स्पष्ट हो गया है कि यह मुद्दा विधानसभा चुनाव की रणनीति में शामिल है। एक ओर जहां विभिन्न राज्यों में राजनीतिक पार्टियाँ “कानून-व्यवस्था” पर अपनी साख दांव पर लगा रही हैं, वहीं बिहार का यह नया मोड़ बताता है कि जनता की सुरक्षा का मसला कार्त्तिक युद्ध की तरह तेज़ हो चुका है।
𝟭𝟱. आगे की चुनौतियाँ
आने वाले सप्ताहों में हम देखेंगे:
- क्या राज्य सरकार अपराध नियंत्रण पर सशक्त कदम उठाती है?
- क्या विपक्ष का यह सवाल विधानसभा में लगातार उठता रहेगा?
- जनता की प्रतिक्रिया चुनावी मतदान पर क्या असर डालेगी?
- क्या चिराग पासवान इस मुद्दे को अपनी राजनीतिक पहचान के रूप में मजबूत कर पाएंगे?
इस बीच यह निश्चित है कि बिहार के सार्वजनिक स्थानों में सुरक्षा की तलाश, राजनीतिक विमर्श का सबसे ऊँचा विषय बन गई है।
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