Monday, October 13, 2025
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जयंतीलाल पटेल 73 साल की उम्र में आस्था की जीत

34 साल पुराना संकल्प पूरा करने निकले श्रद्धालु: मेहसाणा के जयंतीलाल पटेल ने पैदल तय किए 1,338 किमी, अयोध्या पहुंचकर किए रामलला के दर्शन

अयोध्या, भगवान श्रीराम की नगरी — यहां पहुंचना हर रामभक्त का सपना होता है। परंतु, गुजरात के मेहसाणा जिले के 73 वर्षीय जयंतीलाल हरजीवनदास पटेल के लिए यह सिर्फ एक सपना नहीं, बल्कि 34 साल पुराना अधूरा संकल्प था, जिसे उन्होंने अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में पूरा कर दिखाया।

साल 1990 में जब वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथ यात्रा निकाली थी, तभी जयंतीलाल पटेल ने मन ही मन यह व्रत लिया था — “जिस दिन अयोध्या में भगवान श्रीराम का मंदिर बनेगा, उस दिन मैं पैदल चलकर प्रभु के दरबार पहुंचूंगा।”

और 34 साल बाद, 40 दिनों की कठिन यात्रा, 1,338 किलोमीटर का सफर और अटूट श्रद्धा के साथ उन्होंने रामलला के दर्शन कर अपना संकल्प पूरा कर लिया।


🚶‍♂️ यात्रा की शुरुआत: 30 अगस्त से उठे कदम

मेहसाणा जिले के मोदीपुर गांव के निवासी जयंतीलाल पटेल ने 30 अगस्त 2025 को अपनी इस ऐतिहासिक पैदल यात्रा की शुरुआत की।
उन्होंने अपनी पत्नी और परिवार से आशीर्वाद लेकर, माथे पर चंदन का तिलक और हाथों में भगवा ध्वज थामकर कहा —

“अब प्रभु राम के दर्शन के बिना मैं चैन से नहीं बैठूंगा।”

हर दिन वे 33 से 35 किलोमीटर पैदल चलते, और रात में किसी मंदिर, धर्मशाला या सार्वजनिक पार्क में विश्राम करते।
रास्ते में मिलने वाले श्रद्धालुओं ने उन्हें भोजन, पानी और आश्रय देकर ‘रामदूत’ कहा।

उनके रिश्तेदार मोबाइल फोन के जरिए उन्हें अगले पड़ावों की जानकारी देते रहते थे, ताकि यात्रा का हर चरण सुरक्षित और योजनाबद्ध तरीके से पूरा हो सके।


🌄 40 दिनों में तय किया कठिन रास्ता

इस यात्रा में जयंतीलाल पटेल ने गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अनेक जिलों से होकर अयोध्या तक का सफर तय किया।
कभी तेज धूप, कभी बारिश, तो कभी ऊबड़-खाबड़ रास्ते — लेकिन उनका हौसला नहीं टूटा।

“थकान तो होती थी, लेकिन जब भी मन डगमगाता, मैं भगवान राम का नाम लेता और पांव खुद चल पड़ते,”
उन्होंने अयोध्या पहुंचने पर कहा।

उनका कहना है कि यात्रा के दौरान हर कदम पर उन्हें अदृश्य शक्ति का अनुभव होता था, मानो स्वयं श्रीराम उनका मार्गदर्शन कर रहे हों।


🙏 रामलला के दर्शन और आंसुओं का सैलाब

अयोध्या पहुंचने पर जब जयंतीलाल पटेल ने रामलला के भव्य मंदिर में प्रवेश किया, तो उनके आंसू थम नहीं रहे थे।
उन्होंने कहा —

“34 साल से मैं इस क्षण का इंतजार कर रहा था। अब जीवन सफल हो गया।”

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा,

“यह यात्रा हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जिसने कभी श्रीराम के लिए कुछ करने का संकल्प लिया था।”

पटेल ने कारसेवकपुरम का भी दौरा किया, जहां उन्होंने 1990 के रथ यात्रा के अपने अनुभव साझा किए और बताया कि कैसे उस समय उनके भीतर यह संकल्प जागा था।


🌺 तीर्थ, तपस्या और प्रेरणा का संगम

यह यात्रा केवल शारीरिक नहीं थी, बल्कि आत्मिक तपस्या का प्रतीक थी।
हर पड़ाव पर पटेल ने राम नाम संकीर्तन, भजन और पूजा की।
कई स्थानों पर स्थानीय लोगों ने उन्हें “रामपथ यात्री” कहकर सम्मानित किया।

उनके अनुसार, “यह यात्रा सिर्फ मेरे लिए नहीं थी। यह उन लाखों रामभक्तों की भावना थी जो 1990 से अयोध्या के भव्य मंदिर का सपना देख रहे थे।”


📿 भक्ति की मिसाल: जब श्रद्धा बन गई शक्ति

73 साल की उम्र में 1,338 किलोमीटर की पैदल यात्रा आसान नहीं होती।
लेकिन जब मन में राम का नाम और विश्वास हो, तो असंभव भी संभव हो जाता है।
डॉक्टरों की सलाह के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी।
परिवार ने उनका पूरा समर्थन किया।

उनकी बेटी ने कहा,

“पिताजी कहते थे — शरीर कमजोर है, लेकिन विश्वास अमर है। और उन्होंने यह साबित भी कर दिया।”


🕉️ 1990 का संकल्प, 2025 की सिद्धि

साल 1990 की राम रथ यात्रा भारतीय राजनीति और समाज में एक बड़ा मोड़ थी।
सोमनाथ से अयोध्या तक चली उस यात्रा ने राम मंदिर आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाया।
उसी यात्रा में शामिल रहे पटेल ने उस समय यह प्रतिज्ञा ली थी।

अब जब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है और अयोध्या में राम मंदिर पूर्ण वैभव से खड़ा है,
पटेल ने अपने जीवन की सबसे बड़ी ‘तीर्थ सिद्धि’ हासिल की।


🌅 अयोध्या का स्वागत और आशीर्वाद

अयोध्या पहुंचने पर स्थानीय लोगों ने फूल-मालाओं से उनका स्वागत किया।
शहर के साधु-संतों ने उनके चरण पखारे और कहा —

“यह यात्रा श्रद्धा, संकल्प और संयम की मिसाल है।”

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने उन्हें स्मृति चिह्न और शॉल भेंट किया।
पटेल ने रामलला के चरणों में प्रसाद चढ़ाकर, अपने गांव की मिट्टी वहां अर्पित की और कहा,

“अब मेरा जीवन सार्थक हो गया है।”


🌍 भक्ति से बना पुल — गुजरात से अयोध्या तक

जयंतीलाल पटेल की यह यात्रा सिर्फ व्यक्तिगत भक्ति का उदाहरण नहीं है,
बल्कि यह दिखाती है कि राम के प्रति प्रेम किसी सीमा, भाषा या राज्य का मोहताज नहीं है।

गुजरात से लेकर उत्तर प्रदेश तक हर व्यक्ति ने उनके कदमों को आशीर्वाद दिया।
यह यात्रा एक सांस्कृतिक सेतु बन गई, जिसने गुजरात और अयोध्या को “राममय भक्ति” में जोड़ दिया।


❤️ देशभर में बना प्रेरणा का प्रतीक

सोशल मीडिया पर उनकी यात्रा के वीडियो और तस्वीरें वायरल हो रही हैं।
लोग उन्हें “रामभक्त जयंतीलाल दादा” कहकर सम्मान दे रहे हैं।
कई युवाओं ने उनसे प्रेरणा लेकर पैदल यात्राएं शुरू करने का संकल्प भी लिया है।

अयोध्या प्रशासन ने भी उनके प्रयास की सराहना की और कहा कि उनका नाम “श्रद्धा यात्रियों की सूची” में दर्ज किया जाएगा।


🌠 श्रद्धा, संयम और संकल्प का सफर

अंत में जयंतीलाल पटेल के शब्दों में —

“रामलला के मंदिर तक की यह यात्रा मेरे शरीर की नहीं, मेरी आत्मा की यात्रा थी।
यह 34 साल का इंतजार था, जो अब प्रभु के चरणों में समाप्त हुआ है।”


🔖 समापन

जयंतीलाल पटेल की यह यात्रा भारत की उस आध्यात्मिक परंपरा को पुनर्जीवित करती है जो बताती है कि —
“जब संकल्प में भक्ति और लक्ष्य में प्रभु का नाम हो, तो हर दूरी मिट जाती है।”

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उनकी 1,338 किलोमीटर की यह यात्रा इतिहास में दर्ज होगी — न केवल एक रामभक्त की विजय के रूप में,
बल्कि उस भावना के रूप में जिसने एक बार फिर पूरे देश को ‘राममय’ कर दिया।

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