प्रयागराज का संगम घाट, जहां तीन पवित्र नदियाँ – गंगा, यमुन और सरस्वती – मिलती हैं, हर साल लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक आस्था का केंद्र बनता है। विशेषकर मौनी अमावस्या के दिन संगम का दृश्य कुछ अलग ही होता है। इस दिन, श्रद्धालु न केवल स्नान करते हैं, बल्कि अपने जीवन के पापों से मुक्ति पाने के लिए ध्यान और साधना भी करते हैं। और इस वर्ष तो संगम घाट पर जो दृश्य देखने को मिला, वह वाकई अभूतपूर्व था। मौनी अमावस्या पर श्रद्धालुओं की इतनी बड़ी भीड़ जमा हुई कि संपूर्ण घाट क्षेत्र श्रद्धा और आस्था की लहरों से भर गया।
मौनी अमावस्या का धार्मिक महत्व
मौनी अमावस्या का हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्व है। यह दिन विशेष रूप से आत्मिक शांति और पापों से मुक्ति के लिए पूजा-अर्चना करने का माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से मौन रहने का नियम है, ताकि व्यक्ति अपनी आंतरिक आवाज को सुन सके और ध्यान से जीवन के सत्य को समझ सके। गंगा, यमुन और संगम में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि इस दिन प्रयागराज के संगम घाट पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं, और वहां का दृश्य एक विशाल आस्था के महासमुद्र जैसा प्रतीत होता है।

श्रद्धालुओं की अपार भीड़: संगम घाट पर आस्था का ज्वार
इस साल की मौनी अमावस्या पर संगम घाट पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ पहले से कहीं अधिक थी। अनुमान है कि करीब 10 से 12 लाख श्रद्धालु इस पवित्र दिन पर संगम में स्नान करने के लिए पहुंचे। जो दृश्य संगम के घाटों पर था, वह वाकई अद्वितीय था। घाट के चारों ओर श्रद्धालुओं की लहरें, हर कदम पर श्रद्धा और भक्ति की धारा का प्रवाह, और तट पर लगी असंख्य दीपमालाओं का दृश्य किसी स्वर्ग से कम नहीं था।

सुबह की पहली किरण से ही श्रद्धालु संगम तट पर पहुंचना शुरू हो गए थे। ताजे पानी में स्नान करने के बाद, हर कोई अपनी श्रद्धा के अनुसार पूजा-अर्चना में लीन हो गया था। हर व्यक्ति अपने जीवन की परेशानियों से निजात पाने और आत्मिक शांति की तलाश में इस पवित्र स्थान पर आया था। संगम तट पर एक अनोखा दृश्य था, जहां श्रद्धालुओं के बीच विश्वास और आस्था की एक अद्वितीय धारा बह रही थी।
संगम घाट का भव्य दृश्य
संगम घाट का नजारा इस दिन और भी अधिक भव्य हो जाता है। घाट पर लगी असंख्य रंग-बिरंगी झिलमिलाती झालरें, श्रद्धालुओं के हाथों में दीपक और पूजा सामग्री, और गंगा किनारे खड़े साधु-संत इस दृश्य को और भी धार्मिक रूप से समृद्ध बना देते हैं। गंगा के ठंडे पानी में स्नान करने के बाद लोग अपने परिवार के कल्याण की कामना करते हुए पूजा अर्चना करते हैं। तट के किनारे और घाटों पर साधु-संत श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हैं, जबकि श्रद्धालु भी अपनी आस्था से संतुष्ट होकर आत्मिक शांति की प्राप्ति के लिए गहरे ध्यान में लीन होते हैं।
संगम क्षेत्र का हर कोना आस्था और भक्ति के गीतों से गूंज रहा था। हरियाली और शांति के बीच संगम की गहराइयों में स्नान करने का यह समय किसी विशेष अनुभव से कम नहीं था। श्रद्धालुओं के चेहरे पर संतोष और खुशी के भाव थे, और यह दृश्य एक नई ऊर्जा और आस्था से भरा हुआ था।
संगम घाट पर प्रशासन की कड़ी निगरानी
इतनी विशाल भीड़ को देखकर प्रशासन के लिए व्यवस्थाओं को संभालना चुनौतीपूर्ण होता है। इस साल भी प्रशासन ने सुरक्षा, सफाई, और यातायात व्यवस्था में विशेष ध्यान रखा। संगम घाट की सफाई और श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में पुलिस और सुरक्षा बल तैनात किए गए थे। इसके अलावा, घाटों पर जाने के रास्तों को भी नियमित रूप से साफ और व्यवस्थित किया गया था ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की परेशानी का सामना न हो।
साथ ही, स्वास्थ्य सुविधाओं का भी विशेष ध्यान रखा गया था। अस्थायी अस्पतालों और चिकित्सा शिविरों की व्यवस्था की गई थी ताकि श्रद्धालुओं को किसी भी स्वास्थ्य समस्या का सामना न करना पड़े। प्रशासन द्वारा श्रद्धालुओं को जलवायु के अनुसार उचित दिशा-निर्देश भी दिए गए थे, ताकि वे स्वच्छता और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अपने धार्मिक कृत्य संपन्न कर सकें।
स्वच्छता और जागरूकता के प्रयास
प्रयागराज नगर निगम ने इस वर्ष स्वच्छता को लेकर कड़ी मेहनत की है। संगम घाट और मेला क्षेत्र की नियमित सफाई की जाती रही, और कचरा निस्तारण के लिए कई स्थानों पर डस्टबिन लगाए गए थे। इसके अलावा, जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कचरे को गंगा में बहाने से रोकने के लिए भी कड़े कदम उठाए गए थे। प्रशासन और स्थानीय अधिकारियों ने मिलकर जन जागरूकता अभियान चलाया, जिसमें श्रद्धालुओं से आग्रह किया गया कि वे पूजा सामग्री का सही तरीके से निपटान करें और स्वच्छता बनाए रखें। इस कदम ने मेला क्षेत्र की स्वच्छता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई।
संगम घाट पर मौनी अमावस्या: एक अद्वितीय धार्मिक अनुभव
मौनी अमावस्या पर संगम घाट का जो दृश्य था, वह न केवल धार्मिक आस्था का, बल्कि भारतीय समाज की सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक था। लाखों श्रद्धालु, साधु-संत, और पर्यटक इस दिन को अपने जीवन का अविस्मरणीय अनुभव मानते हैं। संगम की पवित्रता, गंगा के निर्मल जल में डुबकी, और आस्था के रंगों में डूबे लोग यह सिद्ध करते हैं कि भारत में आस्था, विश्वास और समाजिक मेलजोल की कोई सीमा नहीं है।
इस पवित्र दिन पर संगम घाट पर बिखरी धारा, अनगिनत दीपों की रौशनी, और श्रद्धालुओं का समूह यह साबित करता है कि हमारी आस्था और संस्कृति को कोई भी चुनौती नहीं दे सकती। संगम के तट पर मौनी अमावस्या पर जो दृश्य देखने को मिला, वह भारतीय धार्मिक परंपराओं की ताकत और सुंदरता का अद्वितीय उदाहरण था।
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निष्कर्ष
प्रयागराज का संगम घाट मौनी अमावस्या पर सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक मिलन बिंदु बन जाता है। श्रद्धालुओं की अपार भीड़, प्रशासन की कड़ी मेहनत, और स्वच्छता के प्रयासों ने इस दिन को और भी विशेष बना दिया। संगम घाट पर उमड़ी श्रद्धालुओं की धारा, उस दिन के धार्मिक महत्व और विश्वास को न केवल साकार करती है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की शक्ति और समृद्धि का प्रतीक भी बन जाती है।