Monday, October 13, 2025
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नोबेल गया मारिया के नाम, ट्रंप हुए नाराज़

अमेरिका की नाराज़गी, नॉर्वे का फैसला और दुनिया की प्रतिक्रिया

वॉशिंगटन में इस समय सियासी तूफान उठा हुआ है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को जब 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize 2025) नहीं मिला, तो व्हाइट हाउस ने इसे “राजनीति से प्रेरित निर्णय” करार दिया। वहीं, यह प्रतिष्ठित पुरस्कार वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मशादो (Maria Corina Machado) को मिला — जिन्होंने अपने देश में तानाशाही के खिलाफ लोकतंत्र की लड़ाई लड़ी है।


🏛️ व्हाइट हाउस की तीखी प्रतिक्रिया: “नोबेल समिति राजनीति खेल रही है”

व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने शुक्रवार को जारी बयान में कहा —

“एक बार फिर नोबेल समिति ने साबित किया कि वे शांति से ज़्यादा राजनीति को प्राथमिकता देती हैं।”

यह बयान तब आया जब नॉर्वे की राजधानी ओस्लो से नोबेल समिति ने मशादो के नाम की घोषणा की। अमेरिका में ट्रंप समर्थकों ने महीनों से सोशल मीडिया पर #TrumpForPeacePrize ट्रेंड कराया था। कई रिपब्लिकन नेताओं का दावा था कि ट्रंप को “अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में उनके योगदान” के लिए सम्मानित किया जाना चाहिए।

लेकिन जब नॉर्वे की नोबेल समिति ने वेनेजुएला की नेता को चुना, तो ट्रंप समर्थकों ने इस फैसले को “राजनीतिक पक्षपात” बताया।


🌍 मारिया मशादो: लोकतंत्र की सच्ची योद्धा

वेनेजुएला की 57 वर्षीय नेता मारिया कोरिना मशादो पिछले दो दशकों से अपने देश में तानाशाही शासन के खिलाफ आवाज़ उठा रही हैं। उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया, धमकियाँ दी गईं, और राजनीति से दूर करने की कोशिश की गई। लेकिन मशादो ने हर बार जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष जारी रखा।

नोबेल समिति ने कहा —

“मारिया मशादो को यह पुरस्कार वेनेजुएला में लोकतंत्र और मानवाधिकारों को बढ़ावा देने की उनकी अडिग प्रतिबद्धता के लिए दिया गया है।”

उनके इस सम्मान को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना की जा रही है। संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ ने भी मशादो को बधाई दी है।


💬 नोबेल समिति की सफाई

नॉर्वे की नोबेल शांति समिति ने अपने बयान में कहा कि पुरस्कार देने का फैसला “किसी राजनीतिक झुकाव” पर नहीं बल्कि “मानवता की सेवा और लोकतंत्र की रक्षा” पर आधारित था।
समिति ने स्पष्ट किया —

“यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है जो दमन और अत्याचार के खिलाफ शांति का रास्ता चुनते हैं। मशादो इसी साहस की प्रतीक हैं।”


💰 मिलने वाली राशि और सम्मान का महत्व

मारिया मशादो को इस सम्मान के साथ 11 मिलियन स्वीडिश क्रोनर (लगभग 1.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर) की राशि दी जाएगी। यह राशि उन कार्यों के लिए समर्थन के रूप में दी जाती है जो वैश्विक शांति और लोकतंत्र के प्रसार में योगदान देते हैं।


🔥 ट्रंप समर्थकों का गुस्सा और सोशल मीडिया पर बवाल

पुरस्कार की घोषणा होते ही #NobelScandal, #TrumpDeservedPeacePrize, और #MariaMachado जैसे हैशटैग ट्विटर (X) पर ट्रेंड करने लगे।
कई ट्रंप समर्थकों ने लिखा —

“ट्रंप ने मध्य पूर्व में शांति समझौते करवाए, फिर भी उन्हें नजरअंदाज किया गया।”

वहीं, मशादो समर्थकों ने पलटवार करते हुए कहा —

“नोबेल राजनीति के लिए नहीं, सिद्धांतों के लिए होता है।”


⚖️ राजनीतिक विश्लेषकों की राय

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप प्रशासन की तीखी प्रतिक्रिया यह दिखाती है कि अमेरिका इस बार नोबेल समिति के फैसले को “अपनी साख पर चोट” के रूप में देख रहा है।
कुछ विश्लेषक इसे 2026 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से जोड़कर भी देख रहे हैं। उनका कहना है कि ट्रंप समर्थक इस मुद्दे को चुनावी प्रचार में “मीडिया और संस्थाओं की निष्पक्षता” पर सवाल उठाने के लिए इस्तेमाल करेंगे।


🌐 वैश्विक परिप्रेक्ष्य में मशादो की जीत का अर्थ

यह पुरस्कार ऐसे समय में दिया गया है जब दुनिया के कई हिस्सों में तानाशाही, सेंसरशिप और मानवाधिकार हनन बढ़ रहे हैं।
नोबेल समिति के इस फैसले को “लोकतंत्र के पक्ष में वैश्विक संकेत” के रूप में देखा जा रहा है।
कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स ने लिखा —

“मारिया मशादो का सम्मान उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो बोलने की आज़ादी और न्याय के लिए लड़ रहे हैं।”


📰 अमेरिकी मीडिया की राय

अमेरिकी मीडिया में इस पूरे घटनाक्रम पर तीखी बहस चल रही है।

  • Washington Post ने लिखा — “व्हाइट हाउस की प्रतिक्रिया यह दर्शाती है कि ट्रंप प्रशासन अपने ही देश के लोकतांत्रिक मूल्यों से टकरा रहा है।”
  • New York Times ने इसे “लोकतंत्र बनाम सत्ता की मानसिकता” की लड़ाई कहा।

📜 ट्रंप की पूर्व उम्मीदवारी और नोबेल विवाद

ट्रंप को पहले भी 2018 और 2020 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था, जब उन्होंने इजराइल-यूएई समझौता कराया था। हालांकि, उस समय भी उन्हें पुरस्कार नहीं मिला था।
अब 2025 में फिर से नामांकन के बावजूद पुरस्कार न मिलना, ट्रंप के राजनीतिक करियर में “एक और बड़ा झटका” माना जा रहा है।


मारिया मशादो का संदेश

पुरस्कार मिलने के बाद मशादो ने एक भावुक बयान में कहा —

“यह सम्मान केवल मेरा नहीं, वेनेजुएला के हर नागरिक का है जो स्वतंत्रता और न्याय के लिए लड़ रहा है। हम शांति के रास्ते से कभी नहीं हटेंगे।”

उनका यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और दुनिया भर के लोकतंत्र समर्थकों ने इसे प्रेरणादायक बताया।

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🧭 निष्कर्ष: नोबेल से बड़ा है लोकतंत्र का संदेश

ट्रंप की नाराज़गी और व्हाइट हाउस की बयानबाज़ी के बीच असली जीत लोकतंत्र और शांति के मूल्यों की हुई है।
मारिया मशादो का सम्मान न सिर्फ वेनेजुएला बल्कि पूरी दुनिया के लिए यह याद दिलाता है कि —

“तानाशाही चाहे कितनी भी मजबूत क्यों न हो, जनता की आवाज़ अंततः जीतती है।”

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